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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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दशा न हो, तब तक प्रशस्त रागरूप प्रवर्तन करो परन्तु श्रद्धान तो ऐसा रखो कि यह भी बन्ध का कारण है - हेय है। यदि श्रद्धान में उसे मोक्षमार्ग माने तो वह मिथ्यादृष्टि हैं। __राग-द्वेष-मोहरूप जो आस्रवभाव है, उनका नाश करने की तो चिन्ता नहीं है और बाह्य क्रिया तथा बाह्य निमित्तों को मिटाने का उपाय रखता है, किन्तु उनके मिटाने से कहीं आश्रव नहीं मिटते... अन्तरङ्ग अभिप्राय में मिथ्यात्वादि रूप रागादिभाव हैं, वही आस्रव है। उसे नहीं पहिचानता, इसलिए आस्रवतत्त्व का सच्चा श्रद्धान नहीं है। (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 226-227 के आधार पर)
प्रश्न 11 - सात तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धा में देव-गुरु-धर्म की श्रद्धा किस प्रकार आ जाती है?
उत्तर - 1. मोक्षतत्त्व - सर्वज्ञ वीतराग स्वभाव है; उसके धारक श्री अरिहन्त-सिद्ध हैं; वे ही निर्दोष देव हैं। इसलिए जिसे मोक्षतत्त्व की श्रद्धा है, उसी को सच्चे देव की श्रद्धा है। __2. संवर और निर्जरा - निश्चयरत्नत्रय स्वभाव है, उसके धारक भावलिङ्गी आचार्य, उपाध्याय और साधु हैं, वे ही निर्ग्रन्थ दिगम्बर गुरु हैं; इसलिए जिसे संवर-निर्जरा को सच्ची श्रद्धा है, उसे सच्चे गुरु की श्रद्धा है।
3. जीवतत्त्व का स्वभाव रागादि घातरहित शुद्ध चैतन्य प्राणमय है। उसके स्वभावसहित अहिंसा धर्म है; इसलिए जिसे शुद्ध जीव की श्रद्धा है, उसे (अपने आत्मा के) अहिंसारूप धर्म की श्रद्धा है।
प्रश्न 12 - देव, गुरु और धर्म का क्या स्वरूप है?