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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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उसमें आकुलता का अभाव है - पूर्ण स्वाधीन निराकुलता, वह सुख है परन्तु अज्ञानी ऐसा न मानकर शरीर में, राग-रङ्ग में ही सुख मानता है। मोक्ष में देह, इन्द्रिय, खान-पान, मित्रादि कुछ भी नहीं होता, इसलिए अज्ञानी अतीन्द्रिय मोक्षसुख को नहीं मानता, यह उसकी मोक्षतत्त्व सम्बन्धी भूल है।
इस प्रकार सात तत्त्वों सम्बन्धी भूल के कारण अज्ञानी जीव अनन्त काल से संसार में भटक रहा है।
प्रश्न 9 - अज्ञानी का जीव-अजीवतत्त्व का श्रद्धान क्यों अयथार्थ है ?
उत्तर - 'जैन शास्त्रों में कहे हुए जीव के त्रस-स्थावर आदि भेदों को; गुणस्थान-मार्गणा आदि भेदों को; जीव-पुद्गलादि के भेदों को तथा वर्णादि भेदों को तो जीव जानता है किन्तु अध्यात्म शास्त्रों में भेदविज्ञान के कारणभूत और वीतरागदशा होने के कारणभूत वस्तु का जैसा निरूपण किया है, वैसा जो नहीं जानता, उसे जीव-अजीतत्त्व की यथार्थ श्रद्धा नहीं है...
जिस प्रकार अन्य मिथ्यादृष्टि निर्धार के बिना पर्यायबुद्धि से जानपने में या वर्णादि में अहंबुद्धि रखते हैं, उसी प्रकार यह भी आत्माश्रित ज्ञानादि में तथा शरीराश्रित उपदेश-उपवासादि क्रियाओं में अपनत्व मानता है।
....कभी-कभी शास्त्रानुसार सच्ची बात भी बनाता है, किन्तु वहाँ अन्तरङ्ग निर्धाररूप श्रद्धान नहीं है, इसलिए जिस प्रकार नशेबाज मनुष्य, माता को माता भी कहे, तथापि वह सयाना नहीं है, उसी प्रकार उसे भी सम्यग्दर्शनवाला नहीं कहते।