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________________ 284 प्रकरण सातवाँ - उत्तर – — अक्षय अनन्त सुख, उपादेय है और उसका कारण मोक्ष है। मोक्ष का कारण संवर और निर्जरा है; उनका कारण विशुद्ध ज्ञान - दर्शनस्वभावी निज आत्मस्वरूप का सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान तथा आचरण लक्षण (स्वरूप) निश्चयरत्नत्रय है । उस निश्चय रत्नत्रय को साधने की इच्छा रखनेवाले जीव को व्यवहाररत्नत्रय क्या है ? वह समझकर, परद्रव्य और राग से अपना लक्ष्य उठाकर निज आत्मा के त्रिकाली स्वरूप की ओर लक्ष्य करना चाहिए। ऐसा करने से निश्चयसम्यग्दर्शन प्रगट होता है और उसके बल से संवर, निर्जरा तथा मोक्ष प्रगट होता है; इसलिए यह तीन तत्त्व उपादेय हैं।' प्रश्न 7 - हेय तत्त्व कौन-से हैं ? उत्तर - .. आकुलता को उत्पन्न करनेवाले ऐसे निगोदनरकादि गतियों के दुःख तथा इन्द्रियों द्वारा उत्पन्न हुआ कल्पित सुख, वह हेय अर्थात् छोड़ने योग्य है; उसका कारण संसार है। उस संसार का कारण आस्रव और बन्ध - यह दो तत्त्व है; पुण्यपाप दोनों बन्धतत्त्व हैं; उस आस्रव तथा बन्ध के कारण पूर्व कथित् निश्चय और व्यवहाररत्नत्रय से विपरीत लक्षण के धारक ऐसे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र, यह तीन हैं; इसलिए आस्रव और बन्ध - यह दो तत्त्व हेय हैं । इस प्रकार हेय तथा उपादेय तत्त्वों के निरूपण से सात तत्त्वों और नव पदार्थों का प्रयोजन सिद्ध होता है।' (मोक्षशास्त्र, पृष्ठ 477 ) प्रश्न 8 - मिथ्यादृष्टि जीव सात तत्त्वों सम्बन्धी कैसी-कैसी भूलें करता है ?
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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