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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
पाप नाम के दो पदार्थों का अन्तर्भाव / समावेश अभेदनय से आस्रव - बन्ध पदार्थ में किया जाए, तब सात तत्त्व कहे जाते हैं । '
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‘कथञ्चित् परिणामपना' सिद्ध होने से जीव और पुद्गल के संयोग की परिणति (परिणाम) से रचित शेष आस्रवादि पाँच तत्त्व सिद्ध होते हैं। जीव में आस्रवादि पाँच तत्त्वों के परिणमन के समय पुद्गल कर्मरूप निमित्त का सद्भाव या अभाव होता है और पुद्गल में आस्रवादि पाँच तत्त्वों के परिणमन में जीव के भावरूप निमित्त का सद्भाव या अभाव होता है; इसी कारण सात तत्त्वों को 'जीव और पुद्गल के संयोग की परिणति से रचित' कहा जाता है परन्तु जीव और पुद्गल की सम्मिलित परिणति होकर शेष पाँच तत्त्व होते हैं - ऐसा नहीं समझाना चाहिए।
(मोक्षशास्त्र स्वा० मं० सो०, अ० 6, की भूमिका) प्रश्न 5 - यद्यपि जीव- अजीव का कथञ्चित् परिणामीपना मानने से भेदप्रधान पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से सात तत्त्व सिद्ध हो गये, तथापि उनसे जीव का क्या प्रयोजन सिद्ध हुआ ? क्योंकि जिस प्रकार पहले अभेदनय से पुण्य और पाप- इन दो पदार्थों का सात तत्त्वों में अन्तर्भाव किया है, उसी प्रकार विशेष अभेदनय की विवक्षा में आस्रवादि पदार्थों का भी जीव और अजीव, इन दो ही पदार्थों में अन्तर्भाव कर लेने से वे दो ही पदार्थ सिद्ध हो जाएँगे ।
उत्तर - .. कौन से तत्त्व हेय हैं और कौन से उपादेय हैं ? - उसका परिज्ञान हो - इस प्रयोजन से आस्रवादि तत्तवों का निरूपण किया जाता है । '
प्रश्न 6 - उपादेय तत्त्व कौन-से हैं ?