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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
, जीव को यदि पर से ज्ञान हो तो जीव और पर एक तत्त्व
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सकता...
हो जाएँ, किन्तु ऐसा नहीं हो सकता ।
(मोक्षशास्त्र, अध्याय 1, सूत्र 2 की टीका, प्रकाशक स्वा० मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़)
प्रश्न 2 - तत्त्व कितने हैं ?
उत्तर
तत्त्व सात हैं (1) जीव, (2) अजीव, (3) आस्रव, (4) बन्ध, (5) संवर, (6) निर्जरा और ( 7 ) मोक्ष |
प्रश्न 3 - सात तत्त्वों का स्वरूप क्या है ?
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उत्तर
1. जीव - जीव, अर्थात् आत्मा। वह सदैव ज्ञातास्वरूप पर से भिन्न और त्रिकाल स्थायी ( रहनेवाला) है।
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2. अजीव - जिसमें चेतना - ज्ञातृत्व नहीं है - ऐसे द्रव्य पाँच हैं। उनमें धर्म, अधर्म, आकाश और काल - यह चार अरूपी हैं और पुद्गल रूपी, अर्थात् स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णसहित है।
3. आस्रव - जीव में जो विकारी शुभाशुभभावरूप अरूपी अवस्था होती है, वह भावास्रव है और उस नवीन कर्म - योग्य रजकणों का स्वयं (स्वत:) आना - आत्मा के साथ एक क्षेत्र में आना, वह द्रव्यास्रव है, उसमें जीव की अशुद्धपर्याय निमित्तमात्र है।
पुण्य और पाप दोनों आस्रव और बन्ध के भेद हैं।
पुण - दया, दान, भक्ति, पूजा, व्रतादि के शुभभाव, जीव को होते हैं, वे अरूपी अशुद्धभाव हैं; वे भावपुण्य हैं। उस समय सातावेदनीय, शुभनाम आदि कर्मयोग्य परमाणुओं का समूह स्वयं (स्वत:) एक क्षेत्रावगाह सम्बन्धरूप से जीव के साथ बँधता है, वह द्रव्यपुण्य है, उसमें जीव का शुभभाव निमित्तमात्र है।