SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 255 है, किन्तु प्रस्तुत वस्तु में उसकी योग्यता से जो कार्य होता है, उसमें अन्य वस्तु की निमित्त कहा जाता है। वस्तु में कार्य नहीं होना था, किन्तु मैं निमित्त हुआ, तब उसमें कार्य हुआ - ऐसी मान्यता में तो स्व-पर की एकत्वबुद्धि ही हुई। लकड़ी अपने आप ऊँची होती है 'यह लकड़ी है, इसमें ऊपर उठने की योग्यता है, किन्तु जब मेरा हाथ उसे स्पर्श करता है, तब वह उठती है अर्थात् जब मेरा हाथ उसके लिए निमित्त होता है, तब वह उठती है' - ऐसा माननेवाला वस्तु की पर्याय को स्वतन्त्र नहीं मानता, अर्थात् उसकी संयोगीदृष्टि है। वह वस्तु के स्वभाव को ही नहीं मानता; इसलिए मिथ्यादृष्टि है। जब लकड़ी ऊपर नहीं उठती, तब उसमें ऊपर उठने की योग्यता ही नहीं है और जब उसमें योग्यता होती है, तब वह स्वयं ऊपर उठती है, उसे हाथ ने नहीं उठाया, किन्तु जब वह ऊपर उठती है, तब हाथ इत्यादि निमित्त स्वयमेव होते ही हैं। इस प्रकार उपादाननिमित्त का मेल स्वभाव से ही होता है। निमित्त का ज्ञान कराने के लिए ऐसा कथन मात्र व्यवहार ही है कि 'हाथ के निमित्त से लकड़ी ऊपर उठी है।' लोह चुम्बक सुई की क्रिया नहीं करता लोह चुम्बक की ओर लोहे की सुई खिंचती है, वहाँ लोह चुम्बक, सुई को नहीं खींचती किन्तु सुई अपनी योग्यता से ही गमन करती है। प्रश्न – यदि सुई अपनी योग्यता से ही गमन करती हो तो जब लोह चुम्बक उसके पास नहीं थी, तब उसने गमन क्यों नहीं किया? और जब लोह चुम्बक निकट आया, तभी क्यों गमन किया?
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy