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उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता
उत्तर
पहले सुई में गमन करने की योग्यता ही नहीं थी, इसलिए उस समय लोह चुम्बक उसके पास ( सुई को खींचने योग्य क्षेत्र में) हो ही नहीं सकती और जब सुई में क्षेत्रान्तर करने की योग्यता होती है, तब लोह चुम्बक आदि कोई निमित्त होता है । उपादान - निमित्त का ऐसा ही सम्बन्ध है कि दोनों का मेल होता है, तथापि एक-दूसरे के कारण किसी की क्रिया नहीं होती । सुई
गमन करने की योग्यता हुई, इसलिए लोह चुम्बक निकट आयी - यह बात नहीं है और लोह चुम्बक निकट आयी, इसलिए सुई खिंच गई - ऐसा भी नहीं है, किन्तु जब सुई की क्षेत्रान्तर होने की योग्यता होती है, उसी समय लोह चुम्बक के उस क्षेत्र में ही रहने की योग्यता होती है, इसी का नाम निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है; किन्तु हैं दोनों स्वतन्त्र ।
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निमित्तपने की योग्यता
प्रश्न
• जब लोह चुम्बक, सुई में कुछ भी नहीं करती तो फिर उसी को निमित्त क्यों कहा है ? अन्य सामान्य पत्थर को निमित्त क्यों नहीं कहा? जैसे लोह चुम्बक, सुई में कुछ नहीं करती, तथापि वह निमित्त कहलाती है, तब फिर लोह चुम्बक की भाँति अन्य पत्थर भी सुई में कुछ नहीं करते; तथापि उन्हें निमित्त क्यों नहीं कहा जाता ?
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उत्तर उस समय, उस कार्य के लिए लोह चुम्बक में ही निमित्तपने की योग्यता है; अर्थात्, उपादान के कार्य के लिए अनुकूलता का आरोप की जाने योग्य योग्यता लोह चुम्बक की उस समय की पर्याय में है, दूसरे पत्थर में वैसी योग्यता उस समय नहीं है । जैसे सुई में उपादान की योग्यता है, इसलिए वह खिंचती है; इसी प्रकार उसी समय लोह चुम्बक में निमित्तपने की योग्यता है, इसलिए उसे