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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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प्रवृत्ति करता है, उसे गृहीतमिथ्यादृष्टि कहा है, उसका नियत एकान्त नियतिवाद है।
'जो होना हो सो होता है' इस प्रकार मात्र परलक्ष्य से मानना यथार्थ नहीं है। होना हो सो होता है यदि ऐसा यथार्थ निर्णय हो तो जीव का ज्ञान, पर के प्रति उदासीन होकर, अपने स्वभाव की ओर झुक जाए और उस ज्ञान में यथार्थ शान्ति व पर का अकर्त्तत्व हो जाए। उस ज्ञान के साथ ही पुरुषार्थ, नियति, काल, स्वभाव और कर्म, यह पाँचों समवाय आ जाते हैं।
प्रश्न – मिथ्यानियतिवादी जीव भी, जब परवस्तु बिगड़ जाती है अथवा नष्ट हो जाती है, तब यह मानकर शान्ति तो रखता ही है कि जैसा होना था सो हो गया' तब फिर उसके नियतिवाद को सच्चा क्यों नहीं माना जाए?
उत्तर - वह जीव जो शान्ति रखता है, वह यथार्थ शान्ति नहीं है, किन्तु मन्दकषायरूप शान्ति है। यदि नियतिवाद का यथार्थ निर्णय हो तो, जिस प्रकार उस एक पदार्थ का जैसा होना था. वैसा हुआ; उसी प्रकार समस्त पदार्थों का जैसा होना हो, वैसा ही होता है - ऐसा भी निर्णय होना चाहिए और यदि ऐसा निर्णय हो तो फिर यह सब मान्यताएँ दूर हो जाती है कि 'मैं परद्रव्य का निमित्त होकर उसका कार्य करूँ।' जिस कार्य में, जिस समय, जिस निमित्त की उपस्थिति रहनी हो, उस कार्य में, उस सयम, वह निमित्त स्वयमेव होता ही है, तब फिर ऐसी मान्यताओं को अवकाश ही कहाँ रहेगा कि 'निमित्त मिलाना चाहिए' अथवा निमित्त की उपेक्षा नहीं की जा सकती, अथवा निमित्त न हो तो कार्य नहीं होता? यदि सम्यक् - नियतिवाद का निर्णय हो तो निमित्ताधीनदृष्टि दूर हो जाती है।
प्रश्न – मिथ्यानियतिवाद को गृहीतमिथ्यात्व क्यों कहा है?