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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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निमित्त -
कहै निमित्त जग में बड्यो, मो तै बड़ौ न कोय।
तीन लोक के नाथ सब, मो प्रसाद तें होय॥32॥ उपादान
उपादान कहै तू कहा, चहुँगति में ले जाय।
तो प्रसाद तैं जीव सब, दुःखी होहिं रे भाय॥33॥ निमित्त
कहै निमित्त जो दुःख सहै, सो तुम हमहिं लगाय।
सुखी कौन तैं होत है, ताको देहु बताय॥34॥ उपादान -
जो सुख को तू सुख कहै, सो सुख तो सुख नाहिं।
ये सुख दुःख के मूल हैं, सुख अविनाशी मांहिं॥35॥ निमित्त -
अविनाशी घट घट वसे, सुख क्यों विलसत नाहिं।
शुभ निमित्त के योग बिन, परे परे बिललाहिं ॥ 36॥ उपादान -
शुभ निमित्त इह जीव को, मिल्यो कई भवसार।
पै इक सम्यक्दर्श बिन, भटकत फिरयो गँवार ॥ 37॥ निमित्त -
सम्यग्दर्शन भये कहा, त्वरित मुक्ति में जाहिं ?
आगे ध्यान निमित्त है, ते शिव को पहुँचाहिं॥38॥ उपादान
छोर ध्यान की धारणा, मोर योग की रीत। तोरि कर्म के जाल को, जोर लई शिव प्रीत॥39॥