SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 238 निमित्त द्वारा पराजय की स्वीकृति तब निमित्त हा तहाँ, अब नहिं जोर बसाय । उपादान शिव लोक में, पहुँच्यो कर्म खपाय ॥ 40 ॥ उपादान को लाभ - उपादान जीत्यो तहाँ, निजबल कर परकाश । सुख अनन्त ध्रुव भोगवे, अन्त न वरन्यो तास ॥ 41 ॥ कण्ठपाठ परिशिष्ट - 2 तत्त्व स्वरूप - उपादान अरु निमित्त ये, सब जीवन पै वीर । जो निजशक्ति संभार ही सो पहुँचें भव तीर ॥ 42 ॥ उपादान की महिमा - भैया महिमा ब्रह्म की, कैसे वरनी जाय ? वचन अगोचर वस्तु कहिवो वचन बताय ॥ 43 ॥ इस संवाद से ज्ञानी और अज्ञानी का अभिप्राय संवाद के रहस्य को कौन जानता है ? - उपादान अरु निमित्त को, सरस बन्यौ संवाद । समदृष्टि को सरल है, मूरख को बकवाद ॥ 44 ॥ जो जानै गुण ब्रह्म के, सो जानै यह भेद । साख जिनागम सों मिलै, तो मत कीज्यो खेद ॥ 45 ॥ ग्रन्थकर्ता का नाम और स्थान एवं रचनाकाल - नगर आगरा अग्र है, जैनी जन को वास । तिह थानक रचना करी, भैया स्वमति प्रकाश ॥ 46 ॥ संवत् विक्रम भूप का, सत्तरहसैं पंचास । फाल्गुन पहले पक्ष में, दशों दिशा परकाश ॥ 47 ॥
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy