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निमित्त द्वारा पराजय की स्वीकृति
तब निमित्त हा तहाँ, अब नहिं जोर बसाय । उपादान शिव लोक में, पहुँच्यो कर्म खपाय ॥ 40 ॥ उपादान को लाभ -
उपादान जीत्यो तहाँ, निजबल कर परकाश । सुख अनन्त ध्रुव भोगवे, अन्त न वरन्यो तास ॥ 41 ॥
कण्ठपाठ परिशिष्ट - 2
तत्त्व स्वरूप -
उपादान अरु निमित्त ये, सब जीवन पै वीर । जो निजशक्ति संभार ही सो पहुँचें भव तीर ॥ 42 ॥ उपादान की महिमा
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भैया महिमा ब्रह्म की, कैसे वरनी जाय ? वचन अगोचर वस्तु कहिवो वचन बताय ॥ 43 ॥
इस संवाद से ज्ञानी और अज्ञानी का अभिप्राय
संवाद के रहस्य को कौन जानता है ?
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उपादान अरु निमित्त को, सरस बन्यौ संवाद । समदृष्टि को सरल है, मूरख को बकवाद ॥ 44 ॥
जो जानै गुण ब्रह्म के, सो जानै यह भेद । साख जिनागम सों मिलै, तो मत कीज्यो खेद ॥ 45 ॥
ग्रन्थकर्ता का नाम और स्थान एवं रचनाकाल -
नगर आगरा अग्र है, जैनी जन को वास । तिह थानक रचना करी, भैया स्वमति प्रकाश ॥ 46 ॥
संवत् विक्रम भूप का, सत्तरहसैं पंचास । फाल्गुन पहले पक्ष में, दशों दिशा परकाश ॥ 47 ॥