________________
236
कण्ठपाठ परिशिष्ट -2
निमित्त -
उपादान तुम जोर हो, तो क्यों लेत अहार।
पर निमित्त के योग सों, जीवत सब संसार॥24॥ उपादान -
जो अहार के जोग सों, जीवत है जगमांहिं।
तो वासी संसार के, मरते कोऊ नांहिं॥25॥ निमित्त -
सूर सोम मणि अग्नि के, निमित्त लखें ये नैन।
अन्धकार में कित गयो, उपादान दृग दैन॥26॥ उपादान
सूर सोम मणि अग्नि जो, करे अनेक प्रकाश।
नैन शक्ति बिना ना लखें, अंधकार सम भास॥27॥ निमित्त -
कहे निमित्त वे जीव को, मो बिन जग के माहिं।
सबै हमारे वश परे, हम बिन मुक्ति न जाहिं॥28॥ उपादान -
उपादान कहै रे निमित्त! ऐसे बोल न बोल।
तोकों तज निज भजत हैं, ते ही करें किलोल॥29॥ निमित्त -
कहै निमित्त हमको तजै, ते कैसे शिव जात।
पंच महाव्रत प्रगट हैं, और हु क्रिया विख्यात ॥30॥ उपादान
पंच महाव्रत जोग त्रय, और सकल व्यवहार। पर कौ निमित्त खपाय के, तब पहुँचे भवपार॥31॥