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कण्ठपाठ परिशिष्ट -2
निमित्त -
देव जिनेश्वर गुरु यती, अरु जिन आगम सार।
इह निमित्त से जीव सब, पावत है भवपार ॥8॥ उपादान -
यह निमित्त इस जीव के, मिल्यो अनन्तीवार।
उपादान पलट्यो नहीं, तो भटक्यो संसार ॥9॥ निमित्त -
कै केवलि कै साधु के, निकट भव्य जो होय।
सो क्षायक सम्यक् लहै, यह निमित्त बल जोय॥10॥ उपादान
केवलि अरु मुनिराज के, पास रहे बहु लोय।
पै जाको सुलट्यो धनी, क्षायिक ताकों होय॥11॥ निमित्त -
हिंसादिक पापन किये, जीव नर्क में जाहिं।
जो निमित्त नहिं काम को, तो इस काहे कहाहि ॥ 12॥ उपादान -
हिंसा में उपयोग जहाँ, रहे ब्रह्म के राच।
तेई नर्क में जात है, मुनि नहिं जाहिं कदाच॥ 13॥ निमित्त -
दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय।
जो निमित्त झूठी कहो, यह क्यों माने लोय॥14॥ उपादान
दया-दान-पूजा भली, जगत माहिं सुखकार। जहं अनुभव को आचरण, तहँ यह बन्ध विचार॥15॥