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प्रकरण छठवाँ
भजति निशितबुद्धिर्यः पुमान् शुद्धदृष्टिः स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः॥24॥ अर्थात् परभाव होने पर भी, सहज गुणमणि की खानरूप और पूर्ण ज्ञानवाले शुद्ध आत्मा को एक को जो तीक्ष्ण बुद्धिवाला शुद्धदृष्टि पुरुष भजता है, वह पुरुष परमश्रीरूपी कामिनी का (मुक्ति सुन्दरी का) बल्लभ बनता है।
अपि च बहुविभावे सत्ययं शुद्धदृष्टिः सहजपरमतत्त्वाभ्यासनिष्णातबुद्धिः। सपदि समयसारान्नन्यदस्तीति मत्त्वा
स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः॥27॥ अर्थात् बहुविभाव होने पर भी, सहज परमतत्त्व के अभ्यास में जिसकी बुद्धि प्रवीण है - ऐसा यह शुद्धदृष्टिवाला पुरुष, 'समयसार से अन्य कुछ भी नहीं हैं' - ऐसा मानकर शीघ्र परमश्री सुन्दरी का बल्लभ होता है।
14. श्री नियमसार गाथा 41 की टीका में कहा है कि -
...त्रिकाल निरुपाधि जिसका स्वरूप है - ऐसे निरंजन निज परम पञ्चमभाव की (पारिणामिकभाव की) भावना से मुमुक्षुओं, पञ्चम गति में जाते हैं; जायेंगे और जाते थे। ____ 15. श्री समयसार गाथा 272 में कहा है कि - एवं ववहारणओ पडिसिद्धो जाण णिच्छयणएण। णिच्छयणयासिदा पुण मुणिणो पावंति णिव्वाणं ॥ 272॥
अर्थात् इस प्रकार (पूर्वोक्त रीति से) (पराश्रित ऐसा)