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प्रकरण छठवाँ
17. उपादान-निमित्त दोनों एकसाथ अपने-अपने कारण से
होते हैं।
18. वास्तव में निश्चयकारण (उपादानकारण) ही सच्चा कारण है, परन्तु उसका कथन दो प्रकार से है। यह निम्नोक्त - 'मोक्षमार्ग सम्बन्धी सिद्धान्त' – भी इस कथन को समान रीति से लागू होता है -
'मोक्षमार्ग कहीं दो तो नहीं हैं, किन्तु मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार से होता है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग निरूपण किया है, वह निश्चय मोक्षमार्ग है और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो नहीं है परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है अथवा सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहें, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है क्योंकि निश्चय-व्यवहार का सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है; अर्थात् सच्चा निरूपण, वह निश्चय तथा उपचार निरूपण, वह व्यवहार; इसलिए निरूपण की अपेक्षा दो प्रकार से मोक्षमार्ग जानना; किन्तु एक निश्चय मोक्षमार्ग है तथा एक व्यवहार मोक्षमार्ग - इस प्रकार दो मोक्षमार्ग मानना मिथ्या है और उन निश्चय-व्यवहार दोनों का उपदेय मानता है वह भी भ्रम है, क्योंकि निश्चय - व्यवहार का स्वरूप तो परस्पर विरोधता सहित है...
(मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 248-249) प्रश्न 55- उपादान-निमित्त सम्बन्धी प्रश्नों के समाधान में कहे अनुसार पर निमित्त और व्यवहार हेय हैं तो ध्रुव उपादान के ही आश्रय से धर्म होता है - ऐसा बतलानेवाले कुछ शास्त्राधार दीजिये?
उत्तर - 1. श्री समयसार गाथा - 11