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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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12. किसी समय उपादानकारण, निमित्त में अतिशय रख देता है और कभी निमित्तकारण, उपादान में बलात्कार से नाना चमत्कार घुसा देता है - ऐसी मान्यता झूठी है। वह दो द्रव्यों की एकत्वबुद्धि बतलाती है। निमित्तकारण के लिए पाँचवी विभक्ति का उपयोग किया जाता है. इसलिए वह आरोपित कारण मिटकर निश्चय कारण नहीं हो जाता। निमित्तकारण होने के लिए परिश्रम, तीव्र यातना या घोर तपस्या करनी पड़ती है - यह मान्यता झूठी है। ___ 13. कार्य की उत्पत्ति के समय उपादान और निमित्त दोनों अविकल कारण होते हैं; ऐसी वस्तु स्वभाव की स्थिति है।
14. पृथ्वी, जल, तेज और वायु - इन निमित्तों से चैतन्य उत्पन्न होता है - ऐसा माननेवाले को श्री आचार्य कहते हैं कि उपादान बिना कोई कार्य उत्पन्न नहीं होता।
15. छहों द्रव्यों में अनादि-अनन्त प्रत्येक समय कार्य होता ही रहता है; किसी भी समय कोई भी द्रव्य कार्यरहित नहीं होता; उस प्रत्येक कार्य के समय उपादानकारण और निमित्तकारण - दोनों सुनिश्चित् रूप से होते ही हैं - न हों, ऐसा कभी नहीं होता।
16. उपादानकारण हो और चाहे जैसा निमित्तकारण हो - ऐसा माने, वह भी मिथ्यामति है क्योंकि उपादान के अनुकूल ही उचित निमित्तकारण होता है।
निमित्तकारण आये, तभी उपादान में कार्य होता है - ऐसी मान्यता भी झूठी है क्योंकि प्रत्येक क्षणिक उपादानकारण के समय निमित्तकारण होता ही है।