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प्रकरण छठवाँ
होता है। राजवार्तिक अध्याय 5, सूत्र 16-17 के नीचे कारिका 16 में कहा है कि
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तयोःकर्तृत्वप्रसङ्ग इति चेन्नोपकारवचनाद् यष्ट्योदिवत्॥
उपरोक्त कारिका की संस्कृत टीका का अर्थ
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गति-स्थिति का धर्म और अधर्म कर्ता है - ऐसा अर्थ का प्रसङ्ग आता है, तो वैसा नहीं है। क्या कारण ? उपकार - वचन के कारण । उपकार, बलाधान, अवलम्बनादि पर्यायवाची शब्द है । जिससे धर्म-अधर्म के, गति -स्थिति होने में, प्रधान कर्तृत्वपने का अस्वीकार हुआ है। जैसे- अपनी जाँघ के बल से जाते हुए अन्ध (मनुष्य) को अथवा अन्य किसी को लकड़ी आदि उपकर होते हैं, न कि प्रेरक (होते हैं) उसी प्रकार अपनी शक्ति से स्वयमेव चलने-स्थिर रहनेवाले जीव- पुद्गलों को धर्म-अधर्म उपकारक हैं, न कि प्रेरक हैं।
प्रश्न 53 - मुख्य तथा उपचार कारणों का क्या अर्थ है ? उत्तर उपादान, वह मुख्य कारण है और निमित्त, वह उपचार कारण है ।
मुख्य का अर्थ निश्चय और उपचार का अर्थ व्यवहार होता है। (देखो, पुरुषार्थसिद्ध्यपाय (कलकत्ता से प्रकाशित ) गाथा 222 की हिन्दी टीका पृ. 122 और छहढाला - ढाल 6 का 14 वाँ छन्द । ) प्रश्न 54 - निमित्त - उपादान के इन प्रश्नों में क्या सिद्धान्त निहित है ?
उत्तर - 1. (1) कोई अकेले ध्रुव उपादानकारण को माने, किन्तु क्षणिक उपादान तथा निमित्तकारणों का न मानें, (2) कोई