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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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होती है। मिथ्यादृष्टि का शुभाराग सर्व अनर्थों की परम्परा का कारण है।
(पञ्चास्तिकाय, गाथा 148 की जयसेनाचार्य कृत टीका के आधार से) (3) पारम्पर्येण तु आस्रवक्रियया नास्ति निर्वाणम्।
संसारगमनकारणमिति निन्द्यं आसवं जानीति॥ 52॥
अर्थात् कर्म का आस्रव करनेवाली क्रिया द्वारा परम्परा से भी निर्वाण प्राप्त नहीं हो सकता; इसलिए संसार में भटकाने के कारणरूप आस्रव को निन्द्य जानो।
(श्री कुन्दकुन्दाचार्यकृत द्वादशानुप्रेक्षा, गाथा 59) (4) मति-श्रुत-अवधि-मनःपर्यय-केवलज्ञान अभेदरूप साक्षात् मोक्ष कारण है।
(समयसार (हिन्दी), गाथा 215, श्री जयसेनाचार्य कृत) तीर्थङ्करप्रकृति आदि परम्परा निर्वाण का कारण है।
(समयसार (हिन्दी), गाथा 121-125, श्री जयसेनाचार्य कृत) (5) ...विपरीत अभिनिवेशरहित श्रद्धानरूप ऐसा जो सिद्धि के परम्परा हेतुभूत भगवन्त पञ्च परमेष्ठी के प्रति चलतामलिनता-अगाढ़तारहित उत्पन्न हुआ निश्चल भक्तियुक्तपना, वही सम्यक्त्व है...
(नियमसार, गाथा 51-55 की टीका) प्रश्न 50 - सम्यग्दृष्टि का शुभभाव परम्परा से धर्म का कारण है - ऐसा शास्त्र में कुछ स्थानों पर कहा जाता है, उसका क्या अर्थ है?
उत्तर - जब सम्यग्दृष्टि जीव अपने स्वरूप में स्थिर नहीं रह सकते, तब राग-द्वेष तोड़ने का पुरुषार्थ करते हैं, परन्तु पुरुषार्थ निर्बल होने से अशुभभाव दूर होता है और शुभ रह जाता है। उस