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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 187 प्रश्न 47 - कार्य, उपादानकारण सदृश (जैसा) होता है, या निमित्तकारण सदृश होता है अथवा दोनों जैसा होता है ? उत्तर - (1) उपादानकारण सदृश कार्य भवति - अर्थात् उपादानकारण जैसा कार्य होता है। आधार - हिन्दी समयसार श्री जयसेनाचार्यकृत टीका, पृष्ठ - 191, 196, 264, 304, 476 तथा परमात्मप्रकाश, अध्याय 2, गाथा 21 की टीका, पृष्ठ 151 (2) उपादानकारण जैसा कार्य होता है, इसलिए निमित्तकारण जैसा अथवा दोनों जैसा कोई कार्य नहीं होता। सदृश = समान, जैसा, समरूप, एक-सा।। [भगवत् गोमण्डल कोष (गुजराती) पृष्ठ 84-88 ] प्रश्न 48 - निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध जीव और द्रव्यकर्म के बीच ही होता है या उपादानकारण और निमित्तकारणरूप सम्बन्ध भी उनमें होता है ? उत्तर - (1) दोनों प्रकार का सम्बन्ध होता है। मात्र निमित्त -नैमित्तिक सम्बन्ध ही होता है, ऐसा नहीं है। (2) रागादि विकाररूप परिणमन, वह जीव का स्वतन्त्र नैमित्तिक कार्य है और द्रव्यकर्म का उदय, वह पुदगल का स्वतन्त्र कार्य है तथा जीव के विकार का वह निमित्तमात्र है। (3) जीव के रागादि अज्ञानभाव, वह अशुद्ध उपादानकारण है - निश्चयकारण है और द्रव्यकर्म का उदय, वह निमित्तकारण है - व्यवहार कारण है। (समयसार (हिन्दी), गाथा 164-65) श्री जयसेनाचार्य कृत टीका में कहा है कि - निर्विकल्पसमाधिभ्रष्टानां मोहसहित कर्मोदयो
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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