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________________ 186 प्रकरण छठवाँ होती है। मोह के उदय का नाश होने पर भी अघातिकर्मों का उदय रहता है, किन्तु वह कुछ भी आकुलता उत्पन्न नहीं कर सकता परन्तु पूर्व काल में आकुलता को सहकारीकारण था, इसलिए अघातिकर्मों का नाश भी आत्मा को इष्ट ही है... (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 452, दिल्ली प्रकाशन) [यहाँ द्रव्य मोहकर्म के उदय को अन्तरङ्ग और शरीरादि को बाह्य सहकारीकारण कहा है। आकुलता में वे दोनों निमित्त -कारण हैं।] प्रश्न 46 - जीव का दूसरे द्रव्य उपकार करते हैं - ऐसा कथन तत्त्वार्थसूत्र में आता है, उसका क्या अर्थ है ? उत्तर - श्री परमात्मप्रकाश अध्याय 2, गाथा 26-27 में इस अर्थ से कहा है कि परद्रव्य जीव का उपकार करते हैं, वह व्यवहार कथन है, अर्थात् वास्तव में उपकार नहीं करते, किन्तु स्वसंवेदन लक्षण से विरुद्ध विभावपरिणति में रत हुए जीव को वे ही निश्चय से दु:ख के कारण (निमित्तकारण) हैं। उस गाथा के शीर्षक निम्नानुसार है 1. अब, जीव का व्यवहारनय द्वारा अन्य पाँचों द्रव्य उपकार करते हैं - ऐसा कहते हैं तथा वे जीव को निश्चय से दुःख के कारण हैं - ऐसा कहते हैं। 2. अब, परद्रव्य का सम्बन्ध निश्चयनय से दुःख का कारण है - ऐसा जानकर, हे जीव! शुद्धात्मा की प्राप्तिरूप मोक्षमार्ग में स्थित हो - ऐसा कहते हैं।* *[ यह गाथाएँ और उनकी टीका मुमुक्षुओं को अवश्य पढ़ने योग्य हैं।]
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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