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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 185 कारणपना इतना ही है कि जहाँ धर्मादिक द्रव्य हों, वहीं जीव-पुद्गल गमनादि क्रियारूप वर्तते हैं। (गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 567 बड़ी टीका) प्रश्न 44 - अन्वयरूप कारण किसे कहते हैं ? उत्तर - सम्यग्दृष्टि को साधकदशा में चारित्रगुण के परिणमन में मिश्रदशा होती है, उसमें शुद्धदशा, वह उपादानकारण है और उसके साथ अविनाभावरूप से रहनेवाला शुभभाव, निमित्त होने से उसे अन्वयकारण कहा जाता है। दृष्टान्त - ...महाव्रत धारण किये बिना सकलचारित्र कभी नहीं होता, इसलिए उन व्रतों को (महाव्रतों को) अन्वयरूप कारण जानकर, कारण में कार्य का उपचार करके उसे चारित्र कहा है। जैसे अरिहन्तदेवादिक का श्रद्धान होने से तो सम्यक्त्व हो अथवा न भी हो, परन्तु अरिहन्तदेवादिक का श्रद्धान हुए बिना तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यक्त्व कभी भी नहीं होता; इसलिए अरिहन्तादिक के श्रद्धान को अन्वयरूप कारण जानकर कारण में कार्य का उपचार करके उस श्रद्धान को सम्यक्त्व कहा है... (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 481, दिल्ली प्रकाशन ) प्रश्न 45 - सहकारीकारण किसे कहते हैं ? उत्तर - निमित्तकारण को सहकारीकारण भी कहते हैं। दृष्टान्त - अघातिकर्मों के उदय के निमित्त से शरीरादिक का संयोग आकुलता का बाह्य सहकारीकारण है। अन्तरङ्ग मोह के उदय से रागादिक हो और बाह्य अघातिकर्मों के उदय से रागादिक के कारणरूप शरीरादिक का संयोग हो, तब आकुलता उत्पन्न
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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