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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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अर्थात् गुरु के उपदेशरूप निमित्त के बिना उपादान (शिष्यादि) बलहीन हैं (जैसे कि) दूसरे पाँव के बिना मनुष्य चल सकता है ?
उत्तर - यह मान्यता सत्य नहीं है - ऐसा बतलाने के लिए श्रीगुरु दोहे से उत्तर देते हैं कि - (1) ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिवमग धार; उपादान निहचै जहाँ तहाँ निमित्त व्योहार।
(बनारसी विलास) अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञानरूप नेत्र; और स्थिरतारूप चरण (अर्थात् लीनतारूप क्रिया) - यह दोनों मिलकर मोक्षमार्ग जानो। जहाँ उपादानरूप निश्चय कारण होता है, वहाँ निमित्तरूप व्यवहार कारण होता ही है।
भावार्थ - उपादान तो निश्चय, अर्थात् सच्चा कारण है; निमित्त तो मात्र व्यवहार, अर्थात उपचार कारण है; सच्चा कारण नहीं है; इसीलिए तो उसे अकारणवत् (अहेतुवत्) कहा है। उसे उपचार (आरोपित) कारण इसलिए कहा है कि वह उपादान का कुछ कार्य करता-कराता नहीं है, तथापि कार्य के समय उस पर अनुकूलता का आरोप आता है; इस कारण उसे उपचारमात्र कहा है।
[सम्यग्ज्ञान और चारित्ररूप लीनता को मोक्षमार्ग जानो - ऐसा कहा; उसमें शरीराश्रित उपदेश, उपवासादिक क्रिया और शुभरागरूप व्यवहार को मोक्षमार्ग न जानो, यह बात आ जाती है।] 2. उपादान जिनगुण जहाँ, तहाँ निमित्त पर होय; भेदज्ञान परवान विधि, विरला बूझे कोय।
(बनारसी विलास) [ यह मान्यता सत्य है? - ऐसा शिष्य का प्रश्न है।]