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प्रकरण छठवाँ
(4) जिस प्रकार अध:कर्म से उत्पन्न हुआ और उद्देश्य से उत्पन्न हुआ - ऐसा जो निमित्तभूत [आहारादि] पुद्गलद्रव्य का प्रत्याख्यान [त्याग] न करता हुआ आत्मा [मुनि], नैमित्तिकभूत बन्ध-साधकभाव का प्रत्याख्यान नहीं करता; उसी प्रकार समस्त परद्रव्यों का प्रत्याख्यान न करता हुआ आत्मा उसके निमित्त से होनेवाले भावों को नहीं त्यागता। (समयसार गाथा 286-87 की टीका)
इसमें बन्ध-साधकभाव नैमित्तिक है और अध:कर्म तथा उद्देशिक आहारादि परद्रव्य निमित्त हैं।
(1) जिस पापकर्म से आहार उत्पन्न होता है, उस पापकर्म को अधःकर्म कहा जाता है तथा उस आहार को भी अध:कर्म कहा है। जो आहार, ग्रहण करनेवाले के निमित्त से ही बनाया गया है, उसे उद्देशिक कहा जाता है। ऐसे आहार (अध:कर्म और उद्देशिक) के निमित्त से आत्मा के जो भाव होते हैं, वे नैमित्तिक बन्ध-साधक भाव हैं।
2. निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध मात्र कर्म और जीव के बीच ही होता है, यह बात यथार्थ नहीं है; कारण बतलाना हो, तब उपादानकारण और निमित्तकारण कहे जाते हैं। ____ 3. निमित्तकारण और उसके साथ का सम्बन्ध बतलाना हो, तब उपादान का कार्य (निमित्त अपेक्षा से) नैमित्तिक कहलाता है। प्रश्न 27 - गुरु उपदेश निमित्त बिना, उपादान बलहीन; ज्यों नर दूजे पाँच बिन, चलवे को आधीन।
(बनारसी विलास)