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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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(6)...वस्तुस्वभाव पर के द्वारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता इसलिए, तथा वस्तुस्वभाव पर को उत्पन्न नहीं कर सकता इसलिए; आत्मा जिस प्रकार बाह्य पदार्थों की असमीपता में (अपने स्वरूप से ही जानता है), उसी प्रकार बाह्य पदार्थों की समीपता में भी अपने स्वरूप से ही जानता है। (इस प्रकार) अपने स्वरूप से ही जाननेवाले उस (आत्मा को), वस्तु स्वभाव से ही विचित्र परिणति को प्राप्त ऐसे मनोहर या अमनोहर शब्दादि बाह्य पदार्थ किञ्चित् विक्रिया उत्पन्न नहीं करते। (समयसार, गाथा 373 से 382 का भावार्थ)
प्रश्न 25- निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध कब कहा जाता है ?
उत्तर - जिस समय वस्तु कार्यरूप परिणमित हो, अर्थात् उपादान में कार्य हो, उसी समय संयोगरूप परवस्तु को निमित्त कहा जाता है। यदि कार्य न हो तो किसी सामग्री को निमित्तकारण नहीं कहा जाता क्योंकि कार्य होने से पूर्व निमित्त किसका? कार्यकारण का समय एक ही होता है। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध एक समय की वर्तमान पर्याय में ही होता है।
प्रश्न 26 - निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध को दृष्टान्त देकर समझाइये।
उत्तर - (1) केवलज्ञान नैमित्तिक है और लोकालोकरूप समस्त ज्ञेय निमित्त हैं। (प्रवचनसार, गाथा 26 की टीका)
(2) सम्यग्दर्शन नैमित्तिक है और सम्यग्ज्ञानी के उपदेशादि निमित्त हैं।
(आत्मानुशासन, गाथा 10 की टीका) (3) सिद्धदशा नैमित्तिक है और पुद्गलकर्म का अभाव निमित्त है।
(समयसार, गाथा 83 की टीका)