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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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से यदि किसी वस्तु में कार्यकारीपने की योग्यता अन्य वस्तु की सहकारिता से मानी जाए तो उस अन्य वस्त में ऐसी योग्यता उससे भिन्न अन्य वस्तु के निमित्त से मानना पड़ेगी, और इस प्रकार उत्तरोत्तर हेतु - परम्परा की कल्पना करने से अनवस्था दोष प्राप्त होगा...
(पण्डित फूलचन्दजी सम्पादित, पञ्चाध्यायी भाग 1,
गाथा 402-404 का विशेषार्थ) (3)...सर्व कार्य एकान्त से बाह्य अर्थ की अपेक्षा करके ही उत्पन्न नहीं होते; अन्यथा चावल धान्य के बीज से जव के अंकुर की उत्पत्ति का प्रसङ्ग प्राप्त होगा, किन्तु तीनों काल में किसी क्षेत्र में ऐसा द्रव्य नहीं है कि जिसके बल से चावल धान्य के बीज को जव के अंकुररूप उत्पन्न करने की शक्ति हो सके। यदि ऐसा होने लगेगा तो अनवस्था दोष प्राप्त होगा; इसलिए किसी भी स्थान पर (सर्वत्र) अन्तरङ्ग कारण से ही कार्य की उत्पत्ति होती है - ऐसा निश्चय करना चाहिए।
(धवल पुस्तक 6, पृष्ठ 164) प्रश्न 23 - वस्तु का प्रत्येक परिणमन अपनी योग्यतानुसार ही होता है, यह बात सत्य है ?
उत्तर - (1) हाँ; वास्तव में कोई भी कार्य होने में या बिगड़ने में उसकी योग्यता ही साक्षात् साधक होती है।
'नन्हेवंबाह्यनिमित्तपेक्षः प्राप्नोतीत्यत्राह।अन्यः पुनर्गुरुविपक्षादिः प्रकृतार्थसमुत्पादभ्रंशयोर्निमित्तमात्रं स्यात्तत्र योग्यतामेव साक्षात् साधकत्वात्।'
अर्थात् यहाँ ऐसी शङ्का होती है कि इस प्रकार तो बाह्य निमित्तों का निराकरण ही हो जाएगा। उसका उत्तर यह है कि