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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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(4)...जहाँ आत्मा स्वयं सुखरूप परिणमित होता है, वहाँ विषय क्या करते हैं?
(प्रवचनसार, गाथा 67) (5) अन्य द्रव्य से अन्य द्रव्य के गुण की उत्पत्ति नहीं की जा सकती; इसलिए (यह सिद्धान्त है कि) सर्व द्रव्य अपनेअपने स्वभाव से उत्पन्न होते हैं। (समयसार, गाथा 372)
इससे सिद्ध होता है कि आत्मा को इन्द्रियजन्य ज्ञान तथा सुख होने में शरीर-इन्द्रियाँ अनुत्पादक होने से अकिञ्चित्कर हैं।
निमित्तकारण, वह कथनमात्र कारण हैं; वास्तविक कारण नहीं है। सच्चा कारण तो एक उपादानकारण ही है। उसका कथन दो प्रकार से है - निश्चय से और व्यवहार से। निश्चय कारण ही सच्चा कारण है; व्यवहार कारण तो मात्र सहचारी पदार्थ का ज्ञान कराने के लिए ही कहा जाता है।
प्रश्न 21 - जीव को संसारदशा में तो विषय, ज्ञान और सुख उत्पन्न करते हैं न?
उत्तर - (1) नहीं; जीव, संसार और मोक्ष दोनों अवस्थाओं में ज्ञानादि स्वरूपवाला ही है, इसलिए यह आत्मा ही स्वयं ज्ञान अथवा सुखमय होता है। (पञ्चध्यायी, भाग 2, गाथा 352)
(2) मतिज्ञानादि के समय में जीव ही स्पर्शादि विषयों को विषय करके स्वयं ही उस ज्ञान और सुखमय हो जाता है; इसलिए आत्मा को उस ज्ञान तथा सुख में वे अचेतन (जड़) स्पर्शादि पदार्थ क्या कर सकते हैं? (पञ्चध्यायी, भाग 2, गाथा 353)
(3) मतिज्ञानादि के उत्पत्ति के समय में आत्मा ही उपादान कारण है तथा देह-इन्द्रियाँ और उनके विषयभूत पदार्थ मात्र बाह्य