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________________ 156 प्रकरण छठवाँ आवश्यकता होती है या नहीं? - यह प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि जब निश्चय कारण - उपादान के कार्यरूप परिणत होने का काल होता है, तब निमित्त की उपस्थिति स्वयमेव होती है; वह न हो ऐसा कभी नहीं होता। - इस विषय में पण्डित फूलचन्दजी द्वारा सम्पादित तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 5, सूत्र 30 की टीका में कहा है कि - ___...वे (निमित्त) हैं; अतः माने गये हैं, इसलिए उनकी आवश्यकता और अनावश्यकता का तो प्रश्न नहीं उठता।' प्रश्न 21 - देह, इन्द्रिय और पाँच इन्द्रियों के विषयों के निकट रहने से ही मनुष्यों को ज्ञान और सुख होता है, इसलिए वे देहादि पदार्थ ज्ञान और सुख के लिए अकिञ्चित्कर कैसे हो सकते हैं? उत्तर - (1) उपादानकारण के आश्रय से - सामर्थ्य से ही निमित्त को हेतु कहा जाता है, किन्तु उपादान के बिना पर को कार्य का निमित्त नहीं कहा जा सकता। निमित्त तो मात्र किस उपादान ने कार्य किया, उसे बतलानेवाला (अभिव्यञ्जक) है। (पञ्चाध्यायी भाग-2, गाथा 358 के आधार से) (2) उपरोक्त कथन का साधक दृष्टान्त यह है कि अग्नि, अगर (चन्दन) द्रव्य की गन्ध का व्यजंक होता है... (पञ्चाध्यायी भाग-2, गाथा 359) (3) उसी प्रकार यद्यपि देह, इन्द्रिय और उनके विषय किसी स्थान पर ज्ञान और सुख के अभिव्यञ्जक होते हैं, किन्तु वे स्वयं ज्ञान और सुखरूप नहीं हो सकते। (पञ्चाध्यायी भाग-2, गाथा 360)
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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