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प्रकरण छठवाँ
निमित्त, मिट्टीरूप उपादान के प्रति ( धर्मास्तिकायवत्) उदासीन कारण हैं ।
(2) कोई मनुष्य घोड़े पर बैठकर बाहर गाँव जाता है, उसमें घोड़ा गतिमान होने से प्रेरक निमित्त है; धर्मास्तिकाय उदासीन निमित्त है परन्तु वे निमित्त, उपादानरूप सवारी करनेवाले मनुष्य के प्रति (धर्मास्तिकायवत्) उदासीन कारण है।
[ जो प्रेरक निमित्तकारण है, वे गति या इच्छपना बतलाने के लिए प्रेरणा करते हैं - ऐसा व्यवहारनय से कहा जाता है, किन्तु वास्तव में किसी द्रव्य की पर्याय दूसरे द्रव्य की पर्याय को प्रेरक नहीं हो सकती ।]
प्रश्न 17 भावरूप निमित्त और अभावरूप निमित्त के दृष्टान्त दीजिये ।
उत्तर- (1) जिस प्रकार उत्तरङ्ग (तरङ्गे उठनेवाली) और निस्तरङ्ग (तरङ्ग रहित) दशाओं को वायु का चलना या न चलना निमित्त होने पर भी, वायु और समुद्र में व्याप्य व्यापकभाव के अभाव के कारण कर्ता - कर्मपने की असिद्धि होने से, समुद्र ही स्वयं अन्तर्व्यापक होकर उत्तरङ्ग अथवा निस्तरङ्ग अवस्था में आदि-मध्य-अन्त में व्याप्त होकर उत्तरङ्ग अथवा निस्तरङ्ग ऐसा अपने को करता हुआ, अपने एक को ही करता प्रतिभासित होता है परन्तु अन्य को करता प्रतिभासित नहीं होता.....
( 2 ) ... उसी प्रकार संसार और निःसंसार अवस्थाओं को पुद्गलकर्म के विपाक का सम्भव * (उत्पत्ति) और असम्भव
* सम्भव होना, उत्पत्ति ।