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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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निमित्तकारण का उसके साथ सम्बन्ध है, वह बतलाने के लिए उस कार्य को नैमित्तिक कहते हैं । इस प्रकार भिन्न-भिन्न पदार्थों के स्वतन्त्र सम्बन्ध को निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध कहते हैं।
निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध परस्पर की परतन्त्रता का सूचक नहीं है, परन्तु नैमित्तिक के साथ कौन निमित्तरूप पदार्थ है - उसका वह ज्ञान कराता है।
जिस कार्य को निमित्त की अपेक्षा से नैमित्तिक कहा है, उसे अपने उपादान की अपेक्षा से उपादेय भी कहते हैं।
(1) निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध दोनों स्वतन्त्र पर्यायों के बीच होता है। ___ (2) निमित्त और नैमित्तिक का स्वचतुष्टय (द्रव्य-क्षेत्र -काल-भाव) भिन्न-भिन्न है।
(3) उपादान-उपादेय सम्बन्ध एक ही पदार्थ को लागू होता है।
(4) कार्य की निमित्त द्वारा पहिचान कराते हुए वह नैमित्तिक कहलाता है और उसी कार्य की उपादान द्वारा पहिचान कराते हुए वह उपादेय कहलाता है।
प्रश्न 16 - प्रेरक निमित्त और उदासीन निमित्त के दृष्टान्त दीजिये।
उत्तर - (1) घट की उत्पत्ति में दण्ड, चक्र, कुम्हारादि प्रेरक निमित्त हैं, क्योंकि दण्ड, चक्र और कुम्हार का हाथ गतिमान है
और कुम्हार उस समय घड़ा बनाने की इच्छावाला है। धर्मास्तिकाय और चक्र को घूमने की धुरी, वे उदासीन निमित्त हैं परन्तु वे सभी