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प्रकरण छठवाँ
[निमित्तों के उपभेद बताने के लिए किन्हीं निमित्तों को प्रेरक और किन्ही को उदासीन कहा जाता है, किन्तु सर्व प्रकार के निमित्त, उपादान के लिए तो धर्मास्तिकायवत् उदासीन ही है। निमित्त के भिन्न-भिन्न प्रकारों का ज्ञान कराने के लिए ही उसके यह दो भेद किये गये हैं।]
प्रश्न 10 – 'कुम्हार ने चाक, दण्ड आदि से घड़ा बनाया' - उसमें घड़ारूप कार्य में (1) त्रिकाली और क्षणिक उपादानकारण कौन हैं ? (2) उदासीन और प्रेरक निमित्त कौन से हैं।
उत्तर - (1) त्रिकाली उपादानकारण मिट्टी; और घड़ारूप कार्य की अनन्तर पूर्ववर्ती पर्याय - मिट्टी के पिण्ड का अभाव (व्यय) तथा घड़ारूप होने की वर्तमान पर्याय की योग्यता - यह दोनों क्षणिक उपादान हैं?
(2) घड़ा बनाने के रागवाला कुम्हार और क्रियावान् चाक, दण्डादि प्रेरक निमित्त हैं।
चाक की कीली, काल, आकाश, धर्म-अधर्म आदि उदासीन निमित्त है; क्योंकि वे गमनक्रिया रहित और राग (इच्छा) रहित हैं।
प्रश्न 11 - उदासीन निमित्त, उपादान में कुछ नहीं कर सकते, परन्तु प्रेरक निमित्त तो कुछ कार्य - प्रभाव, असर करते होंगे?
उत्तर - नहीं; उदासीन या प्रेरक निमित्त, उपादान में कुछ करते ही नहीं क्योंकि पर के लिए सभी निमित्त उदासीन ही हैं। श्री पूज्यपाद आचार्य, इष्टोपदेश की 35 वीं गाथा में कहते हैं कि -
नाज्ञो विज्ञत्वामायाति, विज्ञो नाज्ञत्वमृच्छति। निमित्तमात्रमन्यस्तु, गतेधर्मास्तिकायवत्॥35॥