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प्रकरण पाँचवाँ
उत्तर - (1) नहीं; ‘ऐसा तो कभी नहीं होता, क्योंकि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की परिणति का कर्ता नहीं होता । '
(आत्मावलोकन, पृष्ठ - 46 ) (2) 'कोई द्रव्य किसी द्रव्य को परिणमित नहीं करता, क्योंकि कोई द्रव्य नि:परिणामी (अपरिणामी ) नहीं है; सर्व द्रव्य परिणामी है... ' (आत्मावलोकन, पृष्ठ - 74 )
प्रश्न 31 कोई ऐसा जाने कि चिद्विकाररूप तो जीव परिणमित होता है, किन्तु ऐसा होने में (परिणमित होने में ) पुद्गल स्वयं निमित्तकार्ता होकर वर्तता है - यह ठीक है ।
उत्तर - नहीं; ऐसा तो कभी नहीं हो सकता, क्योंकि
(1) यदि पुद्गल, वह चिद्विकार होने में जान -बुझकर स्वयं कर्मनिमित्तरूप हो, तो वह ज्ञानवन्त हुआ। वह तो अनर्थ उत्पन्न हुआ। जो अचेतन था, वह चेतन हो गया यह एक दूषण । (2) यदि जीव को विकार होने में पुद्गल कर्मत्वरूप से निमित्त होता ही रहे, तो यह दूषण उत्पन्न हो कि कोई द्रव्य किसी द्रव्य का शत्रु नहीं है, तथापि यहाँ पुद्गल, जीव का शत्रु हुआ.... ( आत्मावलोकन, पृष्ठ 46-47 )
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