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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 143 तो (अज्ञानी) ऐसा समझता है कि यह कार्य निमित्त से हुआ है, परन्तु तात्त्विकदृष्टि से देखें तो प्रत्येक कार्य अपनी-अपनी योग्यता से ही होता है क्योंकि उसके अन्वय और व्यतिरेक भी उसके साथ होते हैं; इसलिए निमित्त को किसी भी अवस्था में प्रेरक-कारण मानना उचित नहीं है। (पण्डित फूलचन्दजी सम्पादित, श्री तत्त्वार्थसूत्र, पृष्ठ 251) (2) जिस प्रकार शंख परद्रव्य को भोगता - खाता है, फिर भी उसकी श्वेतता पर के द्वारा कृष्ण नहीं की जा सकती क्योंकि पर, अर्थात् परद्रव्य किसी द्रव्य को परभावस्वरूप करने का निमित्त (निमित्तकारण) नहीं बन सकता... (समयसार, गाथा 220 से 223 की टीका) प्रश्न 30 - ज्ञानी-धर्मात्मा, परजीवों का भला करने के लिए उपदेश देते हैं - यह विधान सही है? उत्तर - नहीं; यह बात सही नहीं है क्योंकि ज्ञानी जानते हैं कि कोई जीव, पर आत्मा का भला-बुरा नहीं कर सकता। सामनेवाला जीव अपने योग्यता से (सत्य समझने के प्रयत्न द्वारा) समझे तो उपदेश को निमित्त कहा जाता है। छद्मस्थ ज्ञानी को अपनी निर्बलता के कारण उपदेश देने का विकल्प उठता है और वाणी, वाणी के कारण निकलती है, उसमें उपदेश का विकल्प (राग) तो निमित्तमात्र है। ज्ञानी, राग और वाणी का स्वामी नहीं है, किन्तु राग और वाणी का व्यवहार से ज्ञाता है। प्रश्न 31 - पुद्गल, जीव को विकाररूप परिणमित कराता है - यह बात ठीक है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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