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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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उत्तर - नहीं, क्योंकि -
(1) अस्तित्वगुण के कारण किसी जीव या पदार्थ का कभी नाश नहीं होता; इसलिए कोई किसी को मार या जिला नहीं सकता।
(2) संयोगरूप जड़ शरीर भी स्वतन्त्र पुद्गलद्रव्य है, उसका भी कोई नाश नहीं कर सकता।
(3) जिस शरीर का वियोग हो, उसका व्यवहार से घात (नाश) कहलाता है। जीव और शरीर का वियोग अपनी-अपनी योग्यता से होता है; उसमें आयुकर्म पूरा हुआ, वह निमित्त है।
(4) घात करनेवाला जीव, दूसरे का घात करने का कषायभाव करके मात्र अपने शुद्ध चैतन्यभाव का ही घात कर सकता है, अन्य कुछ नहीं कर सकता।
(5) 'परमार्थ से कोई द्रव्य किसी का कर्ता हर्ता नहीं हो सकता।'
(प्रवचनसार, गाथा 16 का भावार्थ) (6) जगत् में छहों द्रव्य नित्य-स्थिर रहकर प्रति समय अपनी अवस्था का उत्पाद-व्यय करते रहते हैं; इस प्रकार अनन्त जड़-चेतन द्रव्य एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं; इसलिए वास्तव में किसी का नाश नहीं होता, कोई नया उत्पन्न नहीं होता और न दूसरे उनकी रक्षा कर सकते हैं; अर्थात् इस जगत् में कोई पर को उत्पन्न करनेवाला, पर की रक्षा करनेवाला या विनाश करनेवाला है ही नहीं। __(7) ...जीव, पर जीवों को सुखी-दु:खी आदि करने की बुद्धि करता है, परन्तु पर जीव तो अपने करने से सुखी-दुःखी नहीं