SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 132 प्रकरण पाँचवाँ प्रश्न 22 - विकारीभाव अहेतुक है या सहेतुक? उत्तर - निश्चय से विकारीभाव अहेतुक है, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य अपना परिणमन स्वतन्त्ररूप से करता है, किन्तु विकारी पर्याय के समय निमित्त का आश्रय होता है; इसलिए व्यवहारनय से वह सहेतुक है। ...परमार्थ से अन्य द्रव्य, अन्य द्रव्य के भाव का कर्ता नहीं होता, इसलिए जो चेतन के भाव हैं, उनका कर्ता चेतन ही होता है। इस जीव को अज्ञान से जो मिथ्यात्वादि भावरूप परिणाम हैं. वे चेतन हैं, जड़ नहीं हैं; अशुद्ध निश्चयनय से उन्हें चिदाभास भी कहा जाता है। इस प्रकार वे परिणाम चेतन होने से उनका कर्ता भी चेतन ही है क्योंकि चेतन कर्म का कर्ता चेतन ही होता है - यह परमार्थ है। अभेददृष्टि में तो जीव शुद्ध चेतनामात्र ही है, परन्तु जब वह कर्म के निमित्त से परिणमित होता है, तब उन-उन परिणामों से युक्त होता है और तब परिणाम-परिणामी की भेददृष्टि में अपने अज्ञानभावरूप परिणामों का कर्ता जीव ही है। अभेददृष्टि में तो कर्ता-कर्मभाव ही नहीं है; शुद्ध चेतनामात्र जीववस्तु है...* (समयसार, गाथा 328 से 331 का भावार्थ) पुनश्च, दूसरे प्रकार से देखने पर आत्मा स्वतन्त्ररूप से विकार करता है, इसलिए वह अपना हेतु है; इसलिए उस अपेक्षा से वह सहेतुक है; और पर उसका सच्चा हेतु नहीं है, इसलिए उस अपेक्षा से अहेतुक है। प्रश्न 23 - क्या एक जीव, दूसरे जीव का घात कर सकता * अधिक स्पष्टीकरण के लिए देखिये, अगले प्रश्न का उत्तर।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy