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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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इससे यह समझना चाहिए कि जीव, शरीरादि पर की क्रिया नहीं कर सकता तथा निमित्त से सचमुच कार्य होता है - ऐसा मानना, वह एक भ्रम है क्योंकि एक कार्य के दो कर्ता नहीं हो सकते।
प्रश्न 20 - आत्मा किसका कर्ता है?
उत्तर - आत्मा अपने परिणामों का ही - शुभ, अशुभ या शुद्धभावों का ही कर्ता है, किन्तु ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म और शरीरादि नोकर्म का कभी कर्ता है ही नहीं, क्योंकि - (1) अज्ञानं ज्ञानमप्येवं कुर्वन्नात्मानमंजसा।
स्यात्कर्तात्मात्मभावस्य परभावस्य न क्वचित्॥61॥ अर्थात् इस प्रकार वास्तव में अपने को अज्ञानरूप या ज्ञानरूप करता हुआ आत्मा अपने ही भावों का कर्ता है; परभावों का (पुद्गलभावों का) कर्ता तो कभी है ही नहीं।।
(- श्री समयसार, कलश 61) (2) आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत् करोति किम्।
परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम्॥ 62॥ अर्थात् आत्मा ज्ञानस्वरूप है, स्वयं ही ज्ञान है; वह ज्ञान के अतिरिक्त (जानने के अतिरिक्त) दूसरा क्या करेगा? आत्मा परभाव का कर्ता है - ऐसा मानना (तथा कहना), वह व्यवहारी जीवों का मोह / अज्ञान है। (- श्री समयसार, कलश 62) __ (3) प्रथम तो आत्मा का परिणाम सचमुच स्वयं आत्मा ही है क्योंकि परिणामी, परिणाम के स्वरूप का कर्ता होने के कारण परिणाम से अनन्य है; और जो उसका (आत्मा का) तथाविध परिणाम है, वह जीवमयी क्रिया ही है... और जो (जीवमयी)