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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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प्रश्न 13 - आत्मा में से ही, आत्मा द्वारा ही शुद्धता प्रगट होती है; उसमें कितने कारक हैं ?
उत्तर - आत्मा में से अपादान; आत्मा द्वारा करण; और शुद्धता प्रगट होती है, वह कर्म है; - इस प्रकार तीन कारक हैं।
प्रश्न 14 - एक द्रव्य का पर्यायरूपी कार्य वास्तव में दूसरों के द्वारा हो सकता है, दूसरों के आधार से हो सकता है - ऐसा मानने में कितने कारकों की भूल है?
उत्तर - सभी कारकों की भूल है, क्योंकि जिसने एक भी कारक को स्वतन्त्र न मानकर पराधीन माना, उसने छहों कारक यथार्थ नहीं माने।
प्रश्न 15 - आत्मा, केवलज्ञान प्राप्त करता है, उसमें छहों कारक किस प्रकार लागू होते हैं ?
उत्तर - ...केवलज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखनेवाले आत्मा को बाह्य सामग्री की अपेक्षा रखकर परतन्त्र होना निरर्थक है। शुद्धोपयोग में लीन आत्मा स्वयं ही छह कारकरूप होकर केवलज्ञान प्राप्त करता है । वह आत्मा स्वयं ही अनन्त शक्तिवान् ज्ञायकस्वभाव द्वारा स्वतन्त्र होने से स्वयं ही कर्ता है; स्वयं अनन्त शक्तिवान केवलज्ञान को प्राप्त करता है, इसलिए केवलज्ञान कर्म है, अथवा केवलज्ञान से स्वयं अभिन्न होने के कारण आत्मा स्वयं ही कर्म है; अपने अनन्त शक्तिवान परिणमन-स्वभावरूप उत्कृष्ट साधन द्वारा केवलज्ञान करता है, इसलिए आत्मा स्वयं ही करण है; स्वयं को ही केवलज्ञान देता है, इसलिए आत्म स्वयं ही सम्प्रदान है; अपने में से मति-श्रुतादि अपूर्ण ज्ञान दूर करके