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प्रकरण पाँचवाँ
नष्ट करके घड़ारूप कर्म किया और स्वयं ध्रुव रही; इसलिए स्वयं ही अपादान है; मिट्टी ने अपने ही आधार से घड़ा बनाया, इसलिए स्वयं ही अधिकरण है।
इस प्रकार निश्चय से छहों कारक एक ही द्रव्य में हैं। परमार्थतः एक द्रव्य दूसरे को सहायक नहीं हो सकता, इसलिए और द्रव्य स्वयं ही अपने को, अपने द्वारा, अपने लिए, अपने में से, अपने में करता है; इसलिए यह निश्चय छह कारक ही परम
सत्य हैं।
उपरोक्त रीति से द्रव्य स्वयं ही अपनी अनन्त शक्तिरूप सम्पदा से परिपूर्ण होने के कारण स्वयं ही छह कारकरूप होकर अपना कार्य उत्पन्न करने में समर्थ है; उसे बाह्य सामग्री कोई सहायता नहीं कर सकती... (- श्री प्रवचनसार गाथा, 16 भावार्थ)
प्रश्न 10 - आत्मा प्रज्ञा द्वारा भेदज्ञान करता है, उसमें कौन से कारक हैं?
उत्तर - आत्मा कर्ता है; प्रज्ञा करण है; और भेदज्ञान कर्म है; - इस प्रकार तीन कारक हैं।
प्रश्न 11 - एक समय में कितने कारक होते हैं ? उत्तर - प्रति समय छहों कारक होते हैं। प्रश्न 12 - यह छह कारक क्या हैं? द्रव्य हैं; गुण हैं या पर्याय?
उत्तर - यह छह कारक द्रव्य में रहनेवाले सामान्य और अनुजीवी गुण हैं। प्रति समय उनकी छह पर्यायें नयी-नयी होती रहती हैं।