SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 117 कार्य की सिद्धि कही जाए वहाँ निश्चय-कारक हैं। (- श्री प्रवचनसार, गाथा 16 भावार्थ) प्रश्न 8 - व्यवहार-कारक को दृष्टान्त देकर समझाइये। उत्तर - कुम्हार कर्ता है; घड़ा कर्म है; दण्ड; चक्र; डोरी आदि करण हैं; जल भरतेवाले के लिए कुम्हार घड़ा बनाता है, इसलिए जल भरनेवाला सम्प्रदान है; टोकरे में से मिट्टी लेकर घड़ा बनाता है, इसलिए टोकरा अपादान है; धरती के आधार से घड़ा बनाता है, इसलिए धरती अधिकरण है। इसमें सभी कारक भिन्न-भिन्न हैं । अन्य कर्ता है, अन्य कर्म है, अन्य करण है, अन्य सम्प्रदान है, अन्य अपादान और अन्य अधिकरण है। ___ परमार्थतः कोई द्रव्य किसी का कर्ता-हर्ता नहीं हो सकता; इसलिए यह व्यवहार छह कारक असत्य हैं; वे मात्र उपचरित-असद्भूत-व्यवहारनय से कहे जाते हैं। निश्चय से किसी द्रव्य को अन्य द्रव्य के साथ कारकपने का सम्बन्ध है ही नहीं। (- श्री प्रवचनसार, गाथा 16 भावार्थ) प्रश्न 9 - निश्चय-कारक को दृष्टान्त देकर समझाइये। उत्तर - मिट्टी स्वतन्त्ररूप से घड़ारूप कार्य को पहुँचती है - प्राप्त करती है, इसलिए मिट्टी कर्ता और घड़ा कर्म है; अथवा घड़ा मिट्टी अभिन्न होने के कारण मिट्टी स्वयं ही कर्म है; अपने परिणमनस्वभाव द्वारा मिट्टी ने घड़ा बनाया, इसलिए मिट्टी स्वयं ही करण है; मिट्टी ने घड़ारूप कर्म अपने को ही दिया, इसलिए वह स्वयं ही सम्प्रदान है। मिट्टी ने अपने में से ही पिण्डरूप अवस्था
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy