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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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कार्य की सिद्धि कही जाए वहाँ निश्चय-कारक हैं।
(- श्री प्रवचनसार, गाथा 16 भावार्थ) प्रश्न 8 - व्यवहार-कारक को दृष्टान्त देकर समझाइये।
उत्तर - कुम्हार कर्ता है; घड़ा कर्म है; दण्ड; चक्र; डोरी आदि करण हैं; जल भरतेवाले के लिए कुम्हार घड़ा बनाता है, इसलिए जल भरनेवाला सम्प्रदान है; टोकरे में से मिट्टी लेकर घड़ा बनाता है, इसलिए टोकरा अपादान है; धरती के आधार से घड़ा बनाता है, इसलिए धरती अधिकरण है।
इसमें सभी कारक भिन्न-भिन्न हैं । अन्य कर्ता है, अन्य कर्म है, अन्य करण है, अन्य सम्प्रदान है, अन्य अपादान और अन्य अधिकरण है। ___ परमार्थतः कोई द्रव्य किसी का कर्ता-हर्ता नहीं हो सकता; इसलिए यह व्यवहार छह कारक असत्य हैं; वे मात्र उपचरित-असद्भूत-व्यवहारनय से कहे जाते हैं। निश्चय से किसी द्रव्य को अन्य द्रव्य के साथ कारकपने का सम्बन्ध है ही नहीं।
(- श्री प्रवचनसार, गाथा 16 भावार्थ) प्रश्न 9 - निश्चय-कारक को दृष्टान्त देकर समझाइये।
उत्तर - मिट्टी स्वतन्त्ररूप से घड़ारूप कार्य को पहुँचती है - प्राप्त करती है, इसलिए मिट्टी कर्ता और घड़ा कर्म है; अथवा घड़ा मिट्टी अभिन्न होने के कारण मिट्टी स्वयं ही कर्म है; अपने परिणमनस्वभाव द्वारा मिट्टी ने घड़ा बनाया, इसलिए मिट्टी स्वयं ही करण है; मिट्टी ने घड़ारूप कर्म अपने को ही दिया, इसलिए वह स्वयं ही सम्प्रदान है। मिट्टी ने अपने में से ही पिण्डरूप अवस्था