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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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तथा महाव्रतादि अट्ठाईस मूलगुणों के जो विकल्प उस भूमिका में सहचररूप से होते हैं, वे निमित्त कहलाते हैं।
प्रश्न : 30 - निमित्त से वास्तव में नैमित्तिक (कार्य) होता है - ऐसा माननेवाला किस अभाव को भूलता है ?
उत्तर - (1) किसी भी एक जीव के निमित्त से वास्तव में दूसरे जीव का कार्य होना माने अथवा जीव के निमित्त से पुद्गल का (शरीरादिक का) कार्य होना माने, वह अत्यन्ताभाव को भूलता है।
(2) एक पुद्गल अथवा अनेक पुद्गलों की पर्यायों के निमित्त से वास्तव में दूसरे पुद्गलों की पर्यायें होती हैं - ऐसा जो मानता है, वह अन्योन्याभाव को भूलता है।
प्रश्न 31 - आत्मा का ज्ञान, वह निश्चय और शरीर की क्रिया करना, वह व्यवहार - ऐसा माननेवाला (1) किस अभाव को तथा किस गुण को भूलता है? (2) वह सात तत्त्वों में किस भेद को नहीं मानता?
उत्तर - (1) वह अत्यन्ताभाव और अगुरुलघुत्व गुण को भूलता है।
(2) शरीर, पुद्गलपरमाणु द्रव्य की अवस्था होने से उसकी क्रिया (अवस्था) जीव कर सकता है - ऐसा माननेवला सात तत्त्वों में से जीव और अजीवतत्त्व की भिन्नता को नहीं समझता।
प्रश्न 32 - जीव, परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को अनुकूल अथवा प्रतिकूल मानता है तो वह किस अभाव को भूलता है?
उत्तर - वह अत्यन्ताभाव को भूलता है।