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________________ 112 प्रकरण चौथा उत्तर - वह अत्यन्ताभाव और अगुरुलघुत्व गुण को भूलता है, क्योंकि एक द्रव्य का (कर्म का) दूसरे द्रव्य में (जीव के मिथ्यात्वादि भावों में ) अत्यन्ताभाव होने से कर्मोदय के कारण जीव में कोई विकार नहीं हो सकता। कर्मोदय से जीव को विकार होने का कथन आये, वहाँ समझना चाहिए कि- 'ऐसा नहीं है, किन्तु निमित्त का ज्ञान कराने के लिए वह व्यवहार का कथन है'; निमित्त से उपादान का कार्य होता है - ऐसा ज्ञान कराने के लिए वह कथन नहीं है। प्रश्न 28 - कर्म के उदय, उपशम, क्षयोपशम और क्षय से जीव में सचमुच (निश्चय से) औदायिक औपशमिकादि भाव होते हैं - ऐसा माननेवाला किस अभाव को तथा किस गुण को भूलता है ? उत्तर - वह अत्यन्ताभाव और अगुरुलघुत्व गुण 'भूलता (विशेष स्पष्टीकरण के लिए पूर्व प्रश्न का उत्तर देखें) है। प्रश्न 29 - शरीर की क्रिया से ( व्रत, उपवास, पूजदि में होनेवाली शरीर की क्रिया से) मोक्षमार्ग की साधना होती है ऐसा माननेवाला किस अभाव को भूलता है ? - उत्तर - शरीर की क्रिया, पुद्गलद्रव्य की पर्याय है और मोक्षमार्ग, जीवद्रव्य की पर्याय है, उन दोनों के बीच अत्यन्ताभाव है, उसे वह भूलता है। मोक्षमार्ग स्वद्रव्याश्रित शुद्धपर्याय है, इसलिए स्वद्रव्य के आश्रयरूप एकाग्रता से ही मोक्षमार्ग की साधना हो सकती है । जहाँ वीतरागभावरूप सच्चा मोक्षमार्ग हो वहाँ बाह्य - नग्न निर्ग्रन्थदशा
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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