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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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को भूल जाता है, इसलिए दो द्रव्यों में एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्व होता है।
प्रश्न 24 - वर्तमान में सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ, उसमें जो अभाव लागू हो, वह समझओ?
उत्तर - सम्यग्दर्शन पर्याय का मिथ्यादर्शन पर्याय में प्रागभाव, और तत्पश्चात् श्रद्धा गुण में से नयी-नयी पर्यायें हो, उनमें वर्तमान सम्यग्दर्शन पर्याय का अभाव, वह प्राध्वंसाभाव है।
(शरीर, द्रव्यकर्म, देव, गुरु, शास्त्रादि सर्व परपदार्थों में उस सम्यग्दर्शन पर्याय का अत्यान्ताभाव है, अर्थात् शरीर, द्रव्यकर्मादि से सम्यग्दर्शन पर्याय की उत्पत्ति नहीं है।)
प्रश्न 25 - घातिकर्म के (ज्ञानावरण कर्म के) नाश से केवलज्ञान होता है - यह मान्यता ठीक है?
उत्तर - नहीं, क्योंकि कर्म और ज्ञान के बीच अत्यन्ताभाव है। जीव जब शुद्धोपयोग द्वारा केवलज्ञान दशा प्रगट करे, तब घाति द्रव्यकर्म का स्वयं आत्यन्तिक क्षय होता है। घातिकर्म (ज्ञानावरण कर्म के) क्षय से केवलज्ञान होता है - यह तो निमित्त का ज्ञान कराने के लिए व्यवहारनय का कथन है।
प्रश्न 26 - आत्मा पर का कार्य कर सकता है - ऐसा माननेवाले ने कौन-सा अभाव अथवा कौन-सा गुण नहीं माना?
उत्तर - अत्यन्ताभाव और अगुरुलघुत्व गुण को नहीं माना।
प्रश्न 27 - कर्मोदय से जीव को मिथ्यात्व और रागादि होते हैं - ऐसा सचमुच माननेवाला किस अभाव को तथा किस गुण को भूलता है ? और उसका कारण क्या?