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________________ गुणस्थान-प्रवेशिका पुनः क्यों? श्री टोडरमल स्मारक में प्रतिवर्ष अगस्त एवं अक्टूबर माह में लगनेवाले शिविरों के शिविरार्थियों को यह भलीभाँति जानकारी में है कि शिविरों में दोपहर को गुणस्थानप्रवेशिका की कक्षा लगती है। गुणस्थान-प्रवेशिका चार संस्करण के रूप में अभी तक बारह हजार ५०० की संख्या में समाज में पहँच चुकी हैं। तदनन्तर गणस्थान-प्रवेशिका का थोड़ा विस्तार हुआ और वह गुणस्थान-विवेचन में परिवर्तित हो गयी। जब गणस्थानविवेचन भी ७ संस्करणों के रूप में अभी तक १७ हजार की संख्या में छप चुकी है। तब फिर से गुणस्थान-प्रवेशिका क्यों छप रही है ? ऐसा प्रश्न मन में उत्पन्न होना स्वाभाविक है। गुणस्थान-विवेचन श्री टोडरमल दि. जैन सिद्धान्त महाविद्यालय के शास्त्री प्रथम वर्ष के कोर्स में अनेक वर्षों से वर्ष भर पढाया जाता है। शास्त्री बननेवालों के लिए यह विषय अनिवार्य हो गया है; यह उचित भी है। टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा २००७ में मुक्त विद्यापीठ का कार्य प्रारम्भ हुआ। इसकी मुख्यरूप से जिम्मेदारी श्री पीयूषजी शास्त्री देखते हैं। इस मुक्त विद्यापीठ का शास्त्री का कोर्स तीन वर्ष का है। शास्त्री प्रथम वर्ष में गुणस्थान का अध्ययन कराने का निर्णय हुआ। मुक्त विद्यापीठ के शास्त्री प्रथम वर्ष के कोर्स में गणस्थान-विवेचन का विषय कठिन प्रतीत हुआ। इसलिए मुक्त विद्यापीठ के विद्यार्थियों के अध्ययन में अनुकूलता रहे ह्न इसी भावना से गुणस्थान-प्रवेशिका की आवश्यकता लगी । इसलिए ही फिर से गुणस्थान-प्रवेशिका का प्रकाशन हो रहा है। मुक्त विद्यापीठ का परिचय स्वतंत्ररूप से दिया जा रहा है। अब चौथी बार प्रकाशित गुणस्थान-प्रवेशिका को ही संशोधित-संवर्धित करके पुन: पाँचवीं बार प्रकाशित होते हुए जानकर हमें हार्दिक आनंद हो रहा है। इस संस्करण में चौथे संस्करण की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर विभाग में कुछ प्रश्नोत्तर बढा दिए हैं। साथ ही साथ गुणस्थान अध्याय में भी गुणस्थान-विवेचन से महत्त्वपूर्ण विभाग जोड़ा है एवं जो विषय अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं था, उसे हटा दिया गया है। हमें विश्वास है कि मुमुक्षु समाज एवं मुक्त विद्यापीठ के विद्यार्थी भी इस कृति का लाभ लेते हुए अपने ज्ञान में निर्मलता ला सकेंगे तथा मोक्षमार्ग की प्राप्ति में भी यह कृति अनुकूल सिद्ध होगी ह्र ऐसी आशा है। ह्र ब्र. यशपाल जैन एम.ए. श्री वीतराग-विज्ञान विद्यापीठ परीक्षा बोर्ड द्वारा संचालित श्री टोडरमल जैन मक्त विद्यापीठ __परिचय व्यक्तित्व विकास में आध्यात्मिक शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय आध्यात्मिक शिक्षा को समर्पित एक अनूठा संस्थान है। समाज के विभिन्न वर्गों के सदस्य इस महाविद्यालय में संचालित शिक्षा का लाभ लेना चाहते हैं; किन्तु वे अनेक विवशताओं के कारण नियमित छात्र के रूप में अध्ययन नहीं कर पाते है। अतः क्षेत्र व काल की बाधा को दूर कर जैन तत्त्वज्ञान को आधिकारिक रूप से जन-जन तक पहुँचाने के लिए मुक्त विश्वविद्यालयों की तर्ज पर श्री टोडरमल जैन मुक्त विद्यापीठ की स्थापना की गई है। विश्वविद्यालयों में निर्धारित जैनदर्शन विषय सहित शास्त्री की शिक्षा प्राप्त करने हेतु लौकिक शिक्षा के अन्तर्गत संस्कृत और कला संकाय के पारंपरिक विषयों का अध्ययन करना भी अनिवार्य होता है, अतः जिज्ञास होने पर भी खासकर महिला वर्ग व्यवस्था के अभाव में इसप्रकार के अध्ययन से वंचित रह जाता है। यह मुक्त विद्यापीठ इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए समर्पित है। यह मुक्त विद्यापीठ संस्था संस्कृत आदि की अनिवार्यता के बिना किसी भी जाति, उम्र, वर्ग के लिए जैनतत्त्व विद्या के प्रचारप्रसार हेतु कटिबद्ध है। इस विद्यापीठ द्वारा जैनधर्म के सम्पूर्ण अध्ययन को ध्यान में रखते हुए द्विवर्षीय विशारद एवं उसके पश्चात् त्रिवर्षीय सिद्धान्त विशारद इसप्रकार २ पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। २००७ से प्रारंभ इस मुक्त विद्यापीठ में अभी देश-विदेश के कुल १६२५ विद्यार्थी नामांकित हो चुके हैं, जिनमें से ३७० छात्रों ने द्विवर्षीय विशारद परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है एवं २५९ छात्र अध्ययनरत हैं। त्रिवर्षीय सिद्धान्त विशारद के अभी तक कुल ४२ विद्यार्थी उत्तीर्ण हो चुके हैं एवं ३८३ छात्र अध्ययनरत हैं। इसप्रकार अब आप घर बैठे ही मुक्त विद्यापीठ के अंतर्गत जैनधर्म का व्यवस्थित अध्ययन कर सकते हैं। मुक्त विद्यापीठ की विस्तृत जानकारी और प्रवेश फार्म मँगाने हेतु संपर्क करेंह्न श्री टोडरमल जैन मुक्त विद्यापीठ श्री टोडरमल स्मारक भवन ए-४, बापूनगर, जयपुर-१५
SR No.009452
Book TitleGunsthan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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