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________________ मनोगत पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की ओर से प्रतिवर्ष आयोजित पंद्रह दिवसीय आध्यात्मिक शिक्षण शिविर के अवसर पर 'गुणस्थान' विषय पर कक्षा लेने का सौभाग्य मुझे मिलता रहा है। साथ ही इन्दौर, पिड़ावा, भोपाल, सागर, देवलाली, सेलू आदि अनेक स्थानों पर भी इस विषय की कक्षाएँ मैंने ली हैं। इन कक्षाओं में अभ्यासियों के सामने इस क्लिष्ट विषय को समझने के लिए जो कठिनाइयाँ आती थीं, उन्हें दूर करने के लिए ही इस कृति को तैयार करने का मानस बना। गुणस्थान-प्रवेशिका में तीन अध्याय हैं। पहले अध्याय में पण्डित टोडरमजी द्वारा लिखित गोम्मटसार की टीका 'सम्यग्ज्ञान-चन्द्रिका' की पीठिका है। दूसरे अध्याय में गुणस्थान प्रकरण और करणानुयोग को समझने में उपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर हैं और तीसरे अध्याय में चौदह गुणस्थानों का संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट विवेचन है। पीठिका ह्र इस प्रवेशिका का मूल उद्देश्य गुणस्थानों का परिचय कराना ही है; किन्तु गुणस्थानों के अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करने के लिए यह पीठिका प्रारंभ में ही दी गयी है। मैंने पहले सोचा था कि स्वाध्यायप्रेमी बन्धुओं को चारों अनुयोगों के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि प्रदान करने के लिए कुछ लिखू और पुष्टि में पण्डित टोडरमलजी को प्रस्तुत करूँ। इसके लिए थोड़ा-बहुत लिखने का प्रयास भी किया, लेकिन संतोष नहीं हुआ। अन्त में पण्डित टोडरमलजी की पीठिका का यह विशिष्ट अंश समग्र रूप में देना ही उचित प्रतीत हुआ; क्योंकि पण्डितजी अनेक सदियों से समस्त दिगंबर जैन समाज के विशेष श्रद्धा पात्र हैं। यह पीठिका चारों अनुयोगों के अध्ययन की यथार्थ दृष्टि प्रदान करने का महान पवित्र कार्य करती है। महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरहू पीठिका को पढने के पश्चात् करणानुयोग के अध्ययन की प्रेरणा प्राप्त होना स्वाभाविक है। अन्य तीन अनुयोगों के लिए बद्धि के श्रम की खास आवश्यकता नहीं है; लेकिन करणानुयोग के अध्यययन हेतु विशेष बुद्धि और श्रम भी आवश्यक है। इसीलिए पण्डितजी ने पीठिका में करणानुयोग के पक्षपाती का निराकरण नहीं किया है; क्योंकि इस अनुयोग के पक्षपाती मिलना प्राय: दुर्लभ हैं। गुणस्थान के अध्ययन में सुविधा हेतु करणानुयोग के कुछ विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान होना आवश्यक है। अत: इनका यहाँ प्रश्नोत्तरों के माध्यम से ज्ञान कराया गया है। जो उनका अध्ययन कर इन्हें याद रखेंगे, वे ही गुणस्थान प्रकरण को सरलता से समझ सकेंगे और उन्हें केवली भगवान, उनका केवलज्ञान तथा उनकी वाणी - जिनवाणी की महिमा आये बिना नहीं रहेगी। 'गोम्मटसार कर्मकाण्ड' मूल ग्रन्थ तथा उसका हिन्दी अनुवाद, 'तत्त्वार्थ-सूत्र', पण्डित गोपालदासजी बरैया कृत 'जैनसिद्धान्त-प्रवेशिका', पण्डित कैलाशचन्दजी शास्त्री बनारस द्वारा लिखित 'करणानुयोग प्रवेशिका' आदि ग्रन्थों से ये महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर संकलित किये गये हैं, उसमें अपने मन से कुछ भी नहीं लिखा है। गुणस्थान प्रकरण ह प्रश्नोत्तरों का अच्छी तरह से अध्ययन करने के पश्चात् गुणस्थान का प्रकरण निश्चित ही सरलता से समझ में आयेगा। फिर भी यदि किसी की शिकायत बनी रहती है, तो महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर के अध्ययन का अनुरोध है, प्रश्नोत्तर के अध्ययन से निश्चित ही उनकी शिकायत दूर हो जायेगी। प्रत्येक गुणस्थान के समग्र विशेष ज्ञान हेतु परिभाषा, शब्दार्थ, सम्यक्त्व, चारित्र, काल, गमनागमन, विशेषता हू इन बिन्दुओं के द्वारा प्रत्येक गुणस्थान का संक्षिप्त तथापि सम्पूर्ण विवेचन किया गया है। गमनागमन, काल इत्यादि विषयक कथन आज्ञा-प्रधान, तर्क-अगोचर हैं: क्योंकि करणानुयोग को अहेतुवाद आगम कहा है। अतः इस संबंध में कोई शंका हो, तो पाठकों से मूलग्रन्थों के क्रमशः अध्ययन का अनुरोध है। इस प्रकरण के संकलन में गोम्मटसार जीवकाण्ड का उपयोग तो किया ही है. क्योंकि उसी को पढ़ाने का मूल उद्देश्य रहा है। साथ ही गुणस्थान दर्पण, धवला पुस्तकों का भी उपयोग किया गया है। आशा है कि यह संवर्धित-संशोधित गुणस्थान-प्रवेशिका पाठकों को उपयोगी सिद्ध होगी। यदि जिज्ञासुओं को करणानुयोग में प्रवेश हेतु यह संकलन सहायक सिद्ध हुआ तो मैं अपना श्रम सार्थक समझंगा। ह्र ब्र. यशपाल जैन एम.ए.
SR No.009452
Book TitleGunsthan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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