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• प्रथम चार संस्करण
संशोधित संवर्धित पाँचवा संस्करण
( २६ जनवरी, २०१३)
मूल्य: १० रुपये
टाइप सैटिंग : त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स
ए-४, बापूनगर, जयपुर
मुद्रक :
प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम,
जयपुर
प्रकाशकीय • मनोगत
पहला अध्याय
:
अनुक्रमणिका
:
दूसरा अध्याय
- प्रवेशिका
क्यों?
• गुणस्थान-प्र पुनः • टोडरमल जैन मुक्त विद्यापीठ
• शास्त्राभ्यास से लाभ
तीसरा अध्याय
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका पीठिका
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• गुणस्थान भूमिका
• मिथ्यात्व
• सासादन
• सम्यग्मिथ्यात्व
• अविरतसम्यक्त्व
• देशविरत
• प्रमत्तविरत
• अप्रमत्तविरत
४,०००
२,०००
• अपूर्वकरण
• अनिवृत्तिकरण
६,०००
• सूक्ष्मसाम्पराय
• उपशान्तमोह
• क्षीणमोह
• सयोगकेवली
• अयोगकेवली
• गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान गुणस्थानों से गमनागमन शास्त्राभ्यास से लाभ
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प्रकाशकीय
'गुणस्थान- प्रवेशिका' का पाँचवाँ संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
ट्रस्ट की ओर से प्रतिवर्ष जयपुर में आयोजित होनेवाले पंद्रह दिवसीय आध्यात्मिक शिक्षण शिविर के अवसर पर करणानुयोग संबंधी प्रारम्भिक ज्ञान कराने हेतु गोम्मटसार के गुणस्थान प्रकरण की कक्षा ब्र. यशपालजी जैन द्वारा ली जाती थी। उस समय कक्षा में बैठनेवाले भाइयों को इस विषय को समझने में जो बाधाएँ आती थीं, वे मुख्यतः करणानुयोग की पारिभाषिक शब्दावली से संबंधित रहती थीं।
अतः ब्र. यशपालजी ने गुणस्थान प्रकरण को समझने के लिए आवश्यक शब्दों की परिभाषाओं को विभिन्न ग्रंथों से प्रश्नोत्तरों के रूप में संकलित कर इस पुस्तक को संपादित किया है।
इस पुस्तक में चारों अनुयोगों के तुलनात्मक अध्ययन के साथ करणानुयोग के अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करने हेतु आचार्यकल्प पण्डित-प्रवर टोडरमलजी द्वारा लिखित गोम्मटसार की पीठिका 'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका' का विशिष्ट अंश प्रारंभ में दिया गया है। अंत में चौदह गुणस्थानों का क्रमश: स्वरूप स्पष्ट किया गया है। गुणस्थानों के स्वरूप के साथ प्रत्येक गुणस्थान संबंधी अन्य और आवश्यक जानकारी अनेक ग्रंथों से संकलित की गयी है।
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ब्र. यशपालजी चारों अनुयोगों के संतुलित अध्येता एवं वैराग्य-रस से भीगे हृदयवाले आत्मार्थी विद्वान् हैं। टोडरमल स्मारक भवन में संचालित होने वाली प्रत्येक गतिविधि में आपका सक्रिय योगदान रहता है। ट्रस्ट के अनुरोध से आप बारम्बार प्रवचनार्थ भी जाते रहते हैं।
आपने गोम्मटसार जीवकाण्ड की टोडरमलजी रचित (सम्यग्ज्ञान- चन्द्रिका) टीका का सम्पादन का कार्य अत्यन्त श्रम एवं एकाग्रतापूर्वक किया है तथा इस संपादन कार्य से प्राप्त अनुभव का भरपूर उपयोग करते हुए प्रस्तुत कृति का संकलन एवं सम्पादन किया है; अतः ट्रस्ट आपका हार्दिक आभारी है।
इस पुस्तक की प्रकाशन व्यवस्था में साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है एवं इस पुस्तक का कंपोजिंग का कार्य श्री कैलाशचन्दजी शर्मा ने किया है, अतः वे दोनों बधाई के पात्र हैं। पुस्तक आप सभी आत्मार्थियों को कल्याणकारी हो ह्र इसी भावना के साथ। ह्न डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
महामंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट