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गुणस्थान- प्रवेशिका
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९३. प्रश्न : सागर किसे कहते हैं ?
उत्तर : दस कोड़ाकोड़ी अद्धापल्योपम काल को सागर कहते हैं। ९४. प्रश्न : असंख्यात किसे कहते हैं ?
उत्तर : संख्यातीत कल्पित राशि में से एक-एक संख्या घटाते जाने पर जो राशि समाप्त हो जाती है, उस राशि को असंख्यात कहते हैं । • जो संख्या पाँचों इन्द्रियों का अर्थात् मति श्रुतज्ञान का विषय है, उसे संख्यात कहते हैं ।
अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञानगम्य संख्या को असंख्यात कहते हैं। जिसकी गिनती न हो सके, उसे असंख्यात कहते हैं ।
संख्यातीत राशि को असंख्यात कहते हैं।
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९५. प्रश्न: अनंत किसे कहते हैं ?
उत्तर : असंख्यात के ऊपर केवलज्ञानगम्य संख्या को अनंत कहते हैं। • नवीन वृद्धि न होने पर भी संख्यात या असंख्यातरूप से कितना भी घटाते जाने पर जिस संख्या का अंत न आवे, उसे अक्षय अनंत कहते हैं । (• जिस संख्या का अन्त आ जाये, उसे सक्षय अनंत कहते हैं ।) ९६. प्रश्न : समुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर : मूल शरीर को न छोड़कर तैजस-कार्माणरूप उत्तर देह के साथ जीव- प्रदेशों के शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं। ९७. प्रश्न: समुद्घात कितने और कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : समुद्घात सात प्रकार का होता है ह्र वेदना, कषाय, विक्रिया, मारणान्तिक, तैजस, आहारक और केवली समुद्घात ।
९८. प्रश्न: केवली समुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर : अपने मूल परम औदारिक शरीर को छोड़े बिना आत्म-प्रदेशों के दण्डादिरूप होकर शरीर से बाहर फैलने को केवली समुद्घात कहते हैं। ९९. प्रश्न : केवली भगवान के समुद्घात क्यों होता है ? उत्तर : आयुकर्म की स्थिति अल्प हो और शेष तीन अघातिया
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
कर्मों की स्थिति आयु की अपेक्षा अधिक होने पर, अन्य तीन कर्मों की स्थिति आयुकर्म के समान अंतर्मुहूर्त करने के लिए केवली भगवान के समुद्घात होता है।
१००. प्रश्न : मारणान्तिक समुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर : मरण के अंतर्मुहूर्त पूर्व नवीन पर्याय धारण करने के क्षेत्र को स्पर्श करने के लिए आत्मप्रदेशों के बाहर निकलने को मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं। जिन्होंने परभव की आयु बांध ली है, ऐसे जीवों के ही मारणान्तिक समुद्घात होता है।
१०१. प्रश्न: अनादि मिथ्यादृष्टि जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर : अनादिकाल से आज पर्यंत जिस जीव ने मिथ्यात्व का नाश नहीं किया अर्थात् सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं की ऐसे जीव को अनादि मिथ्यादृष्टि जीव कहते हैं ।
१०२. प्रश्न : सादि मिथ्यादृष्टि जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर : एक बार सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाने पर भी पुनः पुरुषार्थहीनता
से मिथ्यात्वी हो जानेवाले जीव को सादि मिथ्यादृष्टि जीव कहते हैं।
१०३. प्रश्न: गुणस्थान परिज्ञान क्यों आवश्यक है ?
उत्तर : संवर के स्वरूप का विशेष परिज्ञान करने के लिए और निर्जरा के लिए चौदह गुणस्थानों का परिज्ञान करना आवश्यक है।
१०४. प्रश्न: करणानुयोग के अध्ययन का प्रयोजन क्या है ? उत्तर : करणानुयोग में जीवों के व कर्मों के विशेष तथा त्रिलोकादिक की रचना निरूपित करके जीवों को धर्म में लगाया है।
१०५. प्रश्न: करणानुयोग अध्ययन से प्रयोजन की सिद्धि किस प्रकार होती है ?
उत्तर : जो जीव धर्म में उपयोग लगाना चाहते हैं, वे जीवों के गुणस्थान-मार्गणा आदि विशेष तथा कर्मों के कारण अवस्था-फल किस-किसके कैसे-कैसे पाये जाते हैं इत्यादि विशेष तथा त्रिलोक में