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भगवान महावीर और उनकी अहिंसा पैसों के पीछे जो लड़ाइयाँ होती हैं, वे भी पैसों के प्रति राग के कारण ही होती हैं, द्वेष के कारण नहीं ।
अतः यह सहज ही सिद्ध हो जाता है कि युद्धों में होनेवाली सर्वाधिक द्रव्यहिंसा के मूल में राग ही कार्य करता है । यही कारण है कि भगवान महावीर ने रागादिभावों की उत्पत्ति को हिंसा कहा है और रागादिभावों की उत्पत्ति नहीं होने को अहिंसा घोषित किया है। ___ मात्र युद्धों में होनेवाली हिंसा ही नहीं, अपितु खान-पान एवं भोगविलास में होनेवाली हिंसा के मूल में भी मुख्यरूप से राग ही कार्य करता है। मांसभक्षी लोग उसी प्राणी का माँस खाते हैं, जिसका माँस उन्हें अच्छा लगता है। प्रिय भोजन में प्राणियों का सहज अनुराग ही देखा जाता है, द्वेष नहीं। अभक्ष्य पदार्थों के भक्षण के मूल में भी लोलुपता अर्थात् राग ही कार्य करता है।
लोग व्यर्थ ही कहते हैं कि बिल्ली को चूहे से जन्म-जात वैर है, पर यह कैसे संभव है ? क्या किसी को अपनी प्रिय भोज्य सामग्री से भी वैर होता है ? बिल्ली तो चूहे को बड़े चाव से खाती है । आप ही बताइये, क्या आपको शुद्ध, सात्विक, प्रिय आहार से द्वेष है, जो आप उसे चबाकर खा जाते हैं ? • भाई ! जिसप्रकार आप अपने योग्य शुद्ध, सात्विक, प्रिय खाद्य पदार्थों को प्रेम से खाते हैं; उसीप्रकार सभी प्राणी अपनी-अपनी भोज्य-सामग्री का रागवश ही उपभोग करते हैं ।
अतः यह सहज ही सिद्ध होता है कि खान-पान संबंधी हिंसा में भी राग ही मूल कारण है।
इसीप्रकार पाँचों इन्द्रियों के भांग भी राग के कारण ही भोगे जाते हैं। क्रूरतम हिंसा से उत्पन्न शृगार-सामग्रियों के उपयोग के मूल में भी राग ही कार्य करता देखा जाता है। जिन्दा पशुओं की चमड़ी उतारकर बनाई गई चमड़े की वस्तुओं का उपयोग भी अज्ञानी जीव प्रेम से ही करते हैं, उनके प्रति आकर्षण का कारण राग ही है।
भाई ! अधिक क्या कहें ? अकेली हिंसा ही नहीं, पांचों पापों का मूल कारण एकमात्र रागभाव ही हैं। लोभरूप राग के कारण ही लोग झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं, परिग्रह जोड़ते हैं।
___ झूठ बोलकर लोगों को ठगनेवाले लोग पैसे के प्रति ममता के कारण ही तो ऐसा करते हैं । चोर सेठजी की तिजोरी, उसमें रखे पैसों