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गागर में सागर
अब मैं आपसे ही पूछता हूँ कि जर, जोरू और जमीन के कारण जो युद्ध होते हैं; वे जर, जोरू और जमीन के प्रति राग के कारण होते हैं या द्वेष के कारण ?
यह बात तो हाथ पर रखे आँवले के समान स्पष्ट है कि जर, जोरू और जमीन के प्रति राग के कारण ही युद्ध होते हैं, द्वेष के कारण नहीं । रामायण के युद्ध के सन्दर्भ में विचार करें तो श्री रामचन्द्रजी को तो महारानी सीता से प्रगाध स्नेह ( राग ) था ही, पर रावण को भी द्वेष नहीं था । यदि द्वेष होता तो वह सीताजी का हररण न करता, उन्हें घर न ले जाता, सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान न करता, स्वयं को स्वीकार कर लेने के लिए प्रार्थनाएँ न करता और इसप्रकार के प्रलोभन नहीं देता कि तुम मुझे स्वीकार कर लो, मैं तुम्हें पटरानी बनाऊँगा, मन्दोदरी से भी अधिक सम्मान दूंगा ।
यह सब उसके राग को ही सूचित करता है, द्वेष को नहीं । इसप्रकार की प्रवृत्ति राग का ही परिणाम हो सकती है, द्वेष का नहीं ।
यद्यपि यह सत्य है कि रावरण का यह प्रेम वासनाजन्य परस्त्री-प्रेम होने से सर्वथा अनुचित है; पर है तो प्रेम ही, राग ही । अतः सहज ही सिद्ध है कि रामायण का युद्ध नारी के प्रति प्रेम के कारण ही हुआ था, नारी के प्रति राग के कारण ही हुआ था ।
इसीप्रकार कौरवों को तो जमीन से भी जमीन से राग ही था, द्वेष नहीं; माँगते ?
राग था ही, पर पाण्डवों को अन्यथा वे पाँच गाँव भी क्यों
इस पर ग्राप कह सकते हैं कि ग्राप क्या बात करते हैं, वे बिचारे रहते कहाँ ? पर मैं कहता हूँ कि रहने के लिए गाँवों की क्या प्रावश्यकता है ? मेरे पास तो एक इंच जमीन भी नहीं है, पर मैं तो बड़े आराम से रह रहा हूँ, उन्हें गाँवों की क्या आवश्यकता थी ? वनवास के काल में भी तो वे बारह वर्ष तक बिना गाँवों के रहे थे, ग्राखिर ग्रब क्या श्रावश्यकता या पड़ी थी, जो गाँव माँगने लगे और न मिलने पर युद्ध पर उतारू हो गये ।
पर भाईसाहब ! सच्ची बात तो यह है कि उनके मन में भी राग था कि न सही चक्रवर्ती सम्राट, पाँच गाँव के जमींदार ही बन जावगे । इस प्रकार हम देखते हैं कि महाभारत की लडाई भी जमीन के प्रति राग के कारण ही लड़ी गई थी ।