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भगवान महावीर और उनकी हिमा
हाँ, तो भाई ! बात यह है कि महावीर रागभाव को प्रेमभाव को भी हिंसा कहते हैं । भाई ! जिसे तुम प्रेम से रहना कहते हो, शान्ति से रहना कहते हो, वह प्रेम ही तो अशान्ति का वास्तविक जनक है, हिंसा का मूल है ।
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यह तो ग्राप जानते ही हैं कि दुनिया में सर्वाधिक द्रव्यहिंसा युद्धों में ही होती है और युद्ध तीन कारणों से ही होते रहे हैं। वे तीन कारण हैं :- जर, जोरू और जमीन । जर माने रुपया-पैसा धन-सम्पत्ति, जोरू माने पत्नी - स्त्री और जमीन तो श्राप जानते ही हैं ।
रामायण का युद्ध जोरू के कारण ही हुआ था । राम की जोरू (पत्नी) को रावरण हर ले गया और रामायण का प्रसिद्ध युद्ध हो गया । इसीप्रकार महाभारत का युद्ध जमीन के कारण हुआ था । पाण्डवों ने कौरवों से कहा :
"यदि श्राप हमें पाँच गाँव भी दे दें तो हम अपना काम चला लेंगे ।" पर कौरवों ने उत्तर दिया :- "बिना युद्ध के सुई की नोंक के बराबर भी जमीन नहीं मिल सकती । "
बस फिर क्या था ? महाभारत मच गया ।
'पैसे के कारण भी युद्ध होता है - यह बात सिद्ध करने के लिए भी क्या पुराणों की गाथाएँ खोजनी होंगी, इतिहास के पन पलटने होंगे ; विशेषकर व्यापारियों की सभा में, जिनकी सारी लड़ाइयाँ पैसों के पीछे ही होती हैं, जिनका मौलिक सिद्धान्त है कि चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय ।
भाई ! यह आपकी ही बात नहीं है । आज तो सारी दुनिया ही व्यापारी हो गई है । डॉक्टरी जैसा सेवा का काम भी आज व्यापार हो गया है । धर्म के नाम पर भी अनेक दुकानें खुल गई हैं ।
आज तो सभी लड़ाइयाँ व्यापार के लिए ही लड़ी जाती हैं । एक देश दूसरे देश पर आक्रमरण भी उस देश में अपना व्यापार स्थापित करने के लिए ही करता है । बड़े देश छोटे देशों को हथियार बेचने के लिए उन्हें आपस में भिड़ाते रहते हैं ।
इसप्रकार हम देखते हैं कि जगत में जितने भी युद्ध होते हैं, वे प्राय: जर, जोरू और जमीन के कारण ही होते हैं ।