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गागर में सागर
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सुनो ! डॉक्टर दो प्रकार के होते हैं - कलम के और मलम के । शोध-खोज करनेवाले पीएच०डी० आदि कलम के डॉक्टर हैं और ऑपरेशन करनेवाले मलम के डॉक्टर हैं ।
जब कोई मलम . का डॉक्टर किसी मरीज का ऑपरेशन करता है तो मरीज होता है एक और डॉक्टर होते हैं कम से कम दो तथा चार नसें भी साथ होती हैं; मरीज रहता है बेहोश प्रोर डॉक्टर रहते हैं होश में । श्रत: ऑपरेशन के समय यदि मरीज मर जाय तो सम्पूर्ण जिम्मेदारी एक प्रकार से डॉक्टर की ही होती है; पर जब वारणी का डॉक्टर प्रॉपरेशन करता है तो डॉक्टर होता है अकेला और मरीज होते हैं हजार-दो हजार, दश-पाँच हजार भी हो सकते हैं; डॉक्टर के साथ मरीज भी पूरे होश में रहते हैं । अतः यदि कोई हानि हो तो मरीज और डॉक्टर दोनों की समानरूप से जिम्मेदारी रहती है ।
डॉक्टर किसी मरीज का ऑपरेशन कर रहा हो; मरीज की बेहोशी उतनी गहरी न हो, जितना गहरा प्रॉपरेशन हो रहा हो; - ऐसी स्थिति में कदाचित् मरीज को ऑपरेशन के बीच में ही होश श्रा जाय तो क्या होगा ? सोचा है कभी आपने ?
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यदि मरीज डरपोक हुआ तो ग्रॉपरेशन की टेबल से भागने की कोशिश करेगा और यदि क्रोधी हुग्रा तो डाक्टर को भी भगा सकता है; पर ध्यान रहे - ऐसी हालत में चाहे मरीज भागे, चाहे डॉक्टर को भगाये, मरेगा मरीज ही, डाक्टर मरनेवाला नहीं है; अतः भला इसी में है कि जो भी हो, तबतक चुपचाप लेटे रहने में ही मरीज का लाभ है, जबतक कि प्रॉपरेशन होकर टांके न लग जायें; लग ही न जायें, अपितु लगकर, सूखकर डॉक्टर द्वारा खोल न दिये जायें ।
भाई ! यह कहकर कि रागादिभावों की उत्पत्ति हो हिंसा है, प्रेमभाव भी हिंसा ही है, मैंने आप सबका पेट चीर दिया है । यह सुनकर किसी को रुचि उत्पन्न हो सकती है, किसी को क्रोध भी आ सकता है; कोई सभा छोड़कर भी जा सकता है, कोई ताकतवर मेरा बोलना भी बन्द करा सकता है; पर ध्यान रहे चाहे श्राप भागें, चाहे मुझे भगा दें; नुकसान आपका ही होगा, मेरा नहीं ।
अत: भला इसी में है कि यव आप चुपचाप शान्ति से तबतक बैठे रहे, जबतक कि वात पूरी तरह साफ न हो जाय, स्पष्ट न हो जाय ।