________________
90
बिखरे मोती प्रश्न - सभी जीव नित्यनिगोद से आये हुए हैं, ऐसा कहना क्या ठीक है? ठीक हो तो सभी जीव एकेन्द्रिय से ही पंचेन्द्रिय में पहुँचे हैं, ऐसे कहने वाले डार्बिन सिद्धान्त सच हो जाए न? सच माना जाय तो एक समय में एकेन्द्रिय के सिवाय अन्य जीवों के न होने का काल भी होना चाहिए – इसका खुलासा विवरण सहित चाहता हूँ ?
उत्तर - डार्बिन शारीरिक विकास की बात करता है, पर जैनधर्म आत्मिक विकास की; यह दोनों में महान अन्तर है।
प्रश्न – तमिलनाडु में प्रचार हेतु आपको हम आमंत्रित करते हैं। यह आकांक्षा कब पूर्ण होगी? इस प्रान्त के जैनों के लिए आपका क्या शुभ संदेश है?
उत्तर - जब समय आएगा और तमिलनाडु के लिए ही क्या हमारा तो समस्त विश्व को एक ही संदेश है कि अपने को जानो, पहिचानो, अपने में ही जम जाओ, रम जाओ; क्योंकि सच्चा सुख और शांति प्राप्त करने का एकमात्र यही उपाय है।
दान की यह आवश्यक शर्त है कि जो देना है, जितना देना है; वह कम से कम उतना देने वाले के पास अवश्य होना चाहिए; अन्यथा देगा क्या और कहाँ से देगा? पर त्याग में ऐसा नहीं है। जो वस्तु हमारे पास नहीं है, उसको भी त्यागा जा सकता है। उसे मैं प्राप्त करने का यत्न नहीं करूँगा, सहज में प्राप्त हो जाने पर भी नहीं लूँगा - इसप्रकार त्याग किया जाता है । वस्तुतः यह उस वस्तु का त्याग नहीं, उसके प्रति होने वाले या सम्भावित राग का त्याग है। . __ लखपति अधिक से अधिक लाख का ही दान दे सकता है, पर त्याग तो तीन लोक की सम्पत्ति का भी हो सकता है। परिग्रहपरिणामव्रत में निश्चित सीमा तक परिग्रह रखकर और समस्त परिग्रह का त्याग किया जाता है । वह सीमा - जितना अपने पास है, उससे भी बड़ी हो सकती है। धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ-१३२