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________________ 88 बिखरे मोती उत्तर - आपको जो पूछना है नि:संकोच पूछिए न। प्रश्न - आप लोग निश्चय पर तो जोर देते हैं, पर व्यवहार की ओर से उदासीन रहते हैं। ऐसी एक हवा उड़ायी जा रही है, क्या यह सच है ? उत्तर – हाँ, यह बात तो सच है कि हम निश्चय पर जोर देते हैं; क्योंकि मूल मुक्ति का मार्ग तो निश्चय ही है, किन्तु हम व्यवहार के प्रति भी उदासीन नहीं हैं, अपितु सम्यक् व्यवहार पर भी उतना ही जोर देते हैं, जितना कि निश्चय पर; क्योंकि निश्चय का प्रतिपादक तो व्यवहार ही है। फिर आप ही बताइये कि ये शिविर, यह विद्यापीठ, यह महाविद्यालय, यह साहित्य प्रकाशन, यह तीर्थों की सुरक्षा - क्या यह सब निश्चय है; यह सब व्यवहार ही तो है। सुबह ५ बजे से रात्रि १० बजे तक पूजन-भक्ति और पठन-पाठन का क्रम जो कि आप देख रहे हैं क्या यह सब सम्यक् व्यवहार नहीं है, यदि है तो फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि हम व्यवहार के प्रति उदासीन हैं? प्रश्न - वर्तमान में प्रचलित व्यावहारिक धार्मिक क्रियाओं में आपको क्या कोई कमी या न्यूनता नजर आती है ? अगर आती है तो आगमानुसार दिखाई देने वाली कमी क्या है ? उत्तर - सबसे बड़ी कमी यह हैं कि ज्ञान और विवेक की कमी के कारण हमारी सब धार्मिक क्रियाएँ भावशून्य और नीरस हो गई हैं। भावशून्य क्रिया कभी भी वांछित फल नहीं दे सकती। जैसा कि आचार्य समन्तभद्र ने कहा है - तस्मात् क्रिया प्रतिफलन्ति न भावशून्या। हम तो यह कहते हैं कि जो कुछ करो समझ कर करो, विवेकपूर्वक करो। प्रश्न - आजकल भावपूजा और द्रव्यपूजा में सामंजस्य नहीं है, इस पर आपकी राय क्या है ? अन्तरंग दृष्टि से भिन्न होने की सम्भावना है न ? उत्तर - संभावना क्या ? भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है न। पर हमें उस भिन्नता में न उलझकर, जिसमें मतभेद की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है - ऐसे तत्त्वज्ञान पर विशेष जोर देना चाहिए, उसके ही प्रचार-प्रसार में अपनी शक्ति लगाना चाहिए। जब लोगों में तत्त्वज्ञान की पकड़ होगी तो जहां जो सुधार
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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